शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। मनुष्य से हमारा तात्पर्य पुरुष एवं नारी से है। शिक्षा के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है। पेट तो पशु भी भरते हैं, किंतु पुरुष अथवा नारी केवल पेट भरकर ही जीवनयापन नहीं कर सकते। शिक्षित और अशिक्षित व्यक्ति के जीवन में बहुत अंतर है। 'बिना पढ़े नर पशु कहलावै ' अक्षरशः सत्य है। अच्छाई-बुराई का निर्णय शिक्षित ही ले पाता है। अशिक्षित को केवल पेट भरने का कार्य पता होता है, परंतु वह स्तरीय जीवन व्यतीत नहीं कर सकता।
नारी जगत् की अनदेखी प्रारंभ से ही की जाती रही है। इसका कारण उनकी अशिक्षा रही है। उसे घर की चहारदीवारी में बंद करके मात्र सेविका अथवा मनोरंजन का साधन समझा जाता रहा है। आजादी के बाद भी गाँवों में लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल नहीं थे। ग्रामीण दूर-दराज स्थित स्कूलों में अपनी लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने नहीं भेजते थे । इसका परिणाम यह हुआ कि नारी हर क्षेत्र में पिछड़ गई। नारी सबको जन्म देने वाली है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी सभी को जन्म देने वाली नारी है, उस पर सब तरह के प्रतिबंध 1. लगाए जाते हैं। उसका कार्य संतान उत्पन्न करना, पालन-पोषण करना और परिवारजनों की सेवा करना मात्र है। प्रतिबंध लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि बालक पर नारी के संस्कारों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। नारी के गुणों का समावेश किसी-न-किसी रूप में बच्चे में होता है। परिवार का संपूर्ण विकास नारी पर निर्भर होता है। अत: नारी का शिक्षित होना अति आवश्यक है।
नारी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार वैदिक काल में था । अनेक सूक्तियों में महिला रचनाकारों का नाम मिलता है। वेद व पुराणों में स्पष्ट कहा गया है कि नारी के बिना पुरुष कोई भी कार्य संपन्न नहीं कर सकता। इसी कारण महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। समय बदलने के साथ-साथ महिला को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जाने लगा।
नारी मनुष्य को हर क्षेत्र में सहयोग करती है। महाभारत, रामायण आदि महाकाव्यों से पता चलता है कि नारी ने विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना में सहयोग दिया है। आजादी के संघर्ष में भी नारियों ने कंधे-से-कंधा मिलाकर पुरुषों का साथ दिया। आज नारी जागृत हो चुकी है। नारी जाति की जागृति देखकर ही पुरुष को विवश होकर उसके लिए शिक्षा के द्वार खोलने पड़ रहे हैं
आज सरकार भी नारी-शिक्षा के लिए प्रयासरत है। सरकार अपने स्तर पर गाँव-गाँव में स्कूलों व कॉलेजों की स्थापना कर रही है तथा नारी-शिक्षा को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं को अनुदान दे रही है। तकनीकी शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं को बड़े पैमाने पर नियमों में छट भी दी जा रही है। आज मुक्त कंठ से कहा जा रहा है :-
पढ़ी-लिखी लड़की, रोशनी घर की।
नारी शिक्षा का ही परिणाम है कि आज प्रत्येक विभाग में नारी को स्थान मिल रहा है और वे उत्तम कार्य कर अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दे रही हैं। शिक्षित लड़कियाँ घर की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं। इससे दहेज-समस्या, पदां-प्रथा, शिशु-हत्या आदि कुप्रथाओं में भारी कमी आई है।
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि नारी शिक्षा का विशेष महत्व है। समय की माँग है कि महिलाओं को साथ लिए बिना देश का पूर्ण विकास संभव नहीं। आज नारी शिक्षा के कारण स्वावलंबी बनती जा रही है। उसका आत्मबल बढ़ रहा है। वह समाज में अपनी प्रभावी भूमिका अदा कर रही है। इस विकास में एक कमी यह है कि यह समग्र रूप से पूरे देश में नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की तुलना में काफी पिछड़ापन है। अत: नगरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में नारी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
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