हाल ही में नक्सलवाद की घटनाएं बढ़ी हैं। प० बंगाल में राजधानी एक्सप्रेस को घंटों रोका जाता है तो कहीं थाने, रेलवे स्टेशन आदि को बम से उड़ा दिया जाता है। इन सब घटनाओं से सारा देश उद्वेलित हो उठा है। यह नक्सलवाद क्या है ? इसकी पृष्ठभूमि क्या है तथा इसे खत्म करने के लिए क्या उपाय किए जाएँ ?
नक्सलवाद मूलत: मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष सिद्धांत पर आधारित है। इसके अंतर्गत दलित व शोषित वर्ग का प्रथम शत्रु जमींदार, ठेकेदार, साहूकार आदि हैं। नक्सलवादी मानता है कि ये छोटे पूँजीपति ही पूँजीवाद के स्तंभ अधिकारियों, बड़े पूँजीपतियों तथा शासक वर्ग को आधार प्रदान करते हैं। अतः सर्वहारा तंत्र की स्थापना के लिए इस आधार को ही तोड़ देना चाहिए। वे दलित तथा शोषित वर्ग के शासन तंत्र में शामिल लोगों को भी गद्दार मानते हैं। अतः सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से जमींदारों, भूस्वामियों, अफसरों की संपत्ति छीनना इनके अनुसार सर्वहारा वर्ग का स्वयंसिद्ध अधिकार है। इस अधिकार को प्राप्त करने में जो भी बाधक बनता है, उसे समाप्त करने से ही सर्वहारा तंत्र की स्थापना हो पाएगी।
नक्सलवादी भारतीय शासनतंत्र द्वारा किए गए भूमि सुधारों, वेतन वृद्धियों, मजदूरी दरों में बढ़ोतरी को छलावा मानता है। यहीं कारण है कि भाकपा और माकपा की नीतियों को वह मार्क्सवाद की मूलभूत सैद्धांतिक प्रक्रिया में संशोधन मानकर उनसे घृणा करता है। नक्सलवाद का उद्देश्य कानून-व्यवस्था के दायरे में आ जाता है। उसका उद्देश्य आर्थिक तथा सामाजिक समानता की स्थापना करना है, परंतु इस प्रक्रिया में अकारण हिंसा तथा अपराध मूलक कार्यों के कारण नक्सलवाद समाज के लिए घातक बन जाता है। नक्सलवाद के संस्थापक चारु मजूमदार थे, जिन्हें कानु सान्याल तथा जंगम संथाल का पूरा समर्थन प्राप्त था। उन्होंने नक्सलवाद का सैद्धांतिक आधार माओत्से तुंग, चेग्वारा तथा ट्राटस्की के वर्ग संघर्ष संबंधी सिद्धांतों से प्राप्त किया था, परंतु भारत में यह उपयोगी न हो सका। प० बंगाल में यह आंदोलन पनप नहीं सका, किंतु आंध्र, तमिलनाडु, केरल, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों के उन स्थानों पर जहाँ वियतनाम के जंगलों या चीन की पर्वतीय घाटियों जैसा वातावरण है, नक्सलवाद अधिक सफल रहा है। इसका कारण यह है कि इन क्षेत्रों में शासन तंत्र की सीधी पहुँच नहीं है। आज के नक्सलवादी पूर्णरूप से प्रशिक्षित व आधुनिकतम हथियारों से लैस हैं। नक्सलवादी अपने कार्यकर्ताओं को भारतीय सेना के तौर-तरीकों से प्रशिक्षित करते हैं। उन्हें छापामार पद्धति भी सिखाई जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं व पुरुषों को पढ़ा- लिखाकर देश-विदेश की राजनीति से अवगत कराया जाता है। ट्रेनिंग देने के बाद उन्हें जंगल में घूमने का आदेश दिया जाता है। उनका प्रमुख उद्देश्य सत्ता केंद्रों पर हमला करना होता है। ये लोग विभिन्न तरीकों से धन वसूलते हैं। ये वन रक्षकों से वसूली, सरकारी या पूँजीपतियों के धन छीनना, फिरौती, विदेशों से धन, हथियार आदि प्राप्त करते हैं। । इनका लक्ष्य नक्सल राज्य की स्थापना करना है। ये 'दंडकारण्य' की माँग कर रहे हैं।
सरकार द्वारा नक्सलवादी आंदोलन को दबाने के प्रयास भी किए गए हैं। कई बार सुरक्षाबलों ने अभियान चलाए, परंतु राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण ये अभियान असफल हो गए हैं। आज इनकी शक्ति इतनी बढ़ गई है कि वे भारत की संप्रभुता को चुनौती देने लगे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को गंभीर प्रयास करने होंगे। हर समस्या का समाधान बातचीत से हो सकता है, सरकार को चाहिए कि वह नक्सली नेताओं से बातचीत कर उनकी समस्याएँ जाने। सरकार द्वारा इन क्षेत्रों के विकास की नीति भी बनानी होगी ताकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का पिछड़ापन दूर हो सके। भूमि सुधार कानून में संशोधन कर भूस्वामियों के समूह को समाप्त करना होगा। प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी लगाम कसकर जनता को सुशासन प्रदान करना चाहिए। साथ ही, जो सिर-फिरे युवक-युवतियां हैं, उन पर सशस्त्र बलों का भी प्रयोग किया जा सकता है। यदि ये प्रयास तत्काल नहीं किए गए तो देश की एकता खतरे में पड़ जाएगी।
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