सब दिन होत न एक समान


परिवर्तन ही जीवन है। परिवर्तन का नाम ही संसार है। व्यक्ति का जीवन सदैव एक जैसा नहीं रहता। वह कभी सुख और कभी दुख का अनुभव करता है। इसका प्रमुख कारण समय की परिवर्तनशीलता है। वस्तुतः मानव जीवन के सभी दिन एक समान नहीं होते। उनमें परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन होता रहता है।


मनुष्य के जीवन में न तो हमेशा दुख रहता है और न ही सुख। अतः मनुष्य को न तो गर्व करना चाहिए और न अधिक संताप। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी किसी बात के कारण अधिक गर्व करते हैं और अपने सामान्य परिचित व्यक्तियों से कम ही मिलते हैं, फिर कुछ समय व्यतीत होने पर जब उनके गर्व का कारण नष्ट हो जाता है तो उन्हें असली हालत में आना होता है! 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में मिहिरदेव कहता है- “राजनीति ही मनुष्यों के लिए सब कुछ नहीं है। राजनीति के पीछे नीति से भी हाथ न धो बैठो, जिसका विश्व मानव के साथ व्यापक संबंध है।" इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य को मानवता का त्याग नहीं करना चाहिए।


समाज में नित नवीन परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इतिहास परिवर्तन का ही परिणाम है। किसी समय में भारत विश्व के संपन्न देशों में से एक था, आज उसकी गिनती गरीब देशों में की जाती है। प्रगति की दौड़ में हम आज भी कई क्षेत्रों में बहुत आगे हैं तो कई क्षेत्रों में बहुत पीछे। आजादी का दुरुपयोग हो रहा है। समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र में भारी उथल-पुथल हो रहे हैं। समाज की एकता व सौहार्द-भाव समाप्ति के कगार पर हैं। सामाजिक स्तर गिर रहा है। इस परिवर्तन से हमें निराश नहीं होना चाहिए। समय कभी एक जैसा नहीं रहता है। बिना परिवर्तन के व्यक्ति सुख-दुख का अनुभव नहीं कर सकता। परिवर्तन की आशा में ही व्यक्ति कर्मरत रहता है।


मनुष्य को अपने सुखी दिनों में गर्व नहीं करना चाहिए। उसे किसी के मान या अपमान की बात नहीं सोचनी चाहिए, क्योंकि समय परिवर्तनशील है। रहीम ने कहा है :


रहिमन चुप है बैठिए देख दिनन के फेर ।

जब नीके दिन आएँगे बनत न लागे देर ॥


बुरे दिनों में व्यक्ति को अधिक से अधिक सहनशील बनना चाहिए, क्योंकि सहनशीलता से कष्टकारक दिन समाप्त हो जाते हैं। समय बीतने पर कष्ट समाप्त हो जाता है और व्यक्ति के बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। यह उक्ति संपन्न व सुखी व्यक्तियों के लिए नसीहत देती है ताकि वे अपने से कमजोर के साथ उपयुक्त व्यवहार करें और साथ ही दुखी व कमजोर व्यक्तियों के लिए धैर्य धारण करने का संदेश देती है। मनुष्य के हाथ में कार्य करना है। वह अपनी इच्छानुसार फल प्राप्त नहीं कर सकता। अतः उसे कार्य करते रहना चाहिए। व्यक्ति अपने जीवन के विषय में कुछ नहीं कह सकता। मनुष्य अभाव में भी कुछ पाने की कल्पना करता हुआ कर्ममय बन सकता है।

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