करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान


मानव-जीवन में कर्म की प्रधानता है। जन्म से मनुष्य कर्म करना प्रारंभ कर देता है। कुछ कर्म वह अपने लिए करता है तो कुछ समाज के लिए। हर कर्म में एक ही प्रेरणा होती है-सफलता प्राप्ति । मनुष्य जीवन के विविध क्षेत्रों में उद्देश्य प्राप्ति के लिए कार्य करता है। उद्देश्य बिना कर्म किए प्राप्त नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो मनुष्य को कुछ भी प्राप्त करने के लिए काम करना ही पड़ेगा। कर्म अभ्यास के साथ जुड़ा है। अभ्यास का अर्थ है-किसी काम को करने का निरंतर प्रयत्न। किसी काम को करने से वांछित सफलता नहीं मिलती तो उसे निरंतर प्रयत्न करते रहना चाहिए। काम करते रहने पर सफलता न मिलने पर मनुष्य काम करना छोड़ देता है। महापुरुषों ने ऐसी स्थिति में निरंतर काम करने की प्रेरणा दी है :-

देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं ।

रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं।

निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। जैसे पत्थर पर रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर पर निशान पड़ जाते हैं। यह कार्यकुशलता का मूलमंत्र है। शरीर को सुडौल बनाने के लिए निरंतर व्यायाम आवश्यक है। विद्यार्थी को कोई चीज़ बार-बार याद करनी पड़ती है। कवि भी तभी प्रखर बनता है, जब वह अभ्यास करता है। भारतीय काव्यशास्त्र में अभ्यास को प्रतिभा का उत्कर्ष बताया गया है।


अभ्यास से कई लाभ होते हैं। इससे मानव की कार्य-कुशलता बढ़ती है। इससे मनुष्य कार्य की कठिनाइयों के विषय में सिद्धहस्त हो जाता है और पुनरावृत्ति करने पर उसे कठिनाइयाँ कम लगती हैं। इससे ज्ञान में वृद्धि होती है । अभ्यास के प्रसंग में यह भी विचारणीय है कि अभ्यास व्यक्ति स्वयं करता है या उसके लिए किसी के निर्देश की आवश्यकता होती है। यदि व्यक्ति स्वयं अभ्यास करता है तो उसमें पूर्णता नहीं आ पाती, क्योंकि उसे अभ्यास के तरीकों में सिद्धहस्तता प्राप्त नहीं होगी। किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में किया गया अभ्यास अधिक लाभदायक होता है।


अभ्यास के द्वारा व्यक्ति ज्ञान की विभिन्न धाराओं का परिचय प्राप्त करता है। यह विशेष प्रकार की आदत का निर्माण कर देता है। यह आदत कई रूपों में काम देती है। अभ्यास के कारण ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ग्लेडस्टोन मंच पर बोल सके। कालिदास की कहानी के बारे में सभी जानते हैं। पं० जवाहरलाल नेहरू को अपने विद्यार्थी जीवन में भाषण न देने पर जुर्माना देना पड़ा था, परंतु आजादी की लड़ाई में उन्होंने भाषण देने का अभ्यास किया और शीघ्र ही जनता पर छा गए।


इस प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए अभ्यास की ज़रूरत होती है। अभ्यास मानव-जीवन के लिए पारस पत्थर है जिसका स्पर्श पाकर लोहा भी सोना हो सकता है। यह बिलकुल सही है कि जड़बुद्धि व्यक्ति भी अभ्यास से सीख सकता है। उसकी अज्ञानता समाप्त हो जाती है। सफलता के लिए अभ्यास नितांत आवश्यक है। ठीक ही कहा गया है :-


करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान ॥

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