परीक्षा की तैयारी


परीक्षा प्रत्येक प्रकार की शिक्षा के लिए अनिवार्य है। बिना परीक्षण के कोई वस्त प्रयोग में नहीं लाई जाती अथवा वस्तु का महत्व नहीं जाना जा सकता और न ही उसका परिणाम जाना जा सकता है। बिना परिणाम के उसका लाभ-हानि नहीं निकाला जा सकता। इसलिए वस्तु को प्रयोग में लाने से पूर्व परीक्षण किया जाता है। यही बात प्रत्येक परीक्षा पर लागू होती है। परीक्षा के बिना शिक्षा का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और न स्तर ज्ञात किया जा सकता है।


विद्यार्थी परीक्षा को बहुत कठिन मानकर भयभीत होता है। वह सोचता है कि परीक्षा आ रही है, अब क्या होगा? विद्यार्थी ही परीक्षा के लिए अध्ययन करता है, परिश्रम करता है, फिर भी परेशान होता है, ऐसा क्यों ? पर यह बात प्रत्येक छात्र पर लागू नहीं होती। जो छात्र प्रारंभ से ही सुचारु रूप से अध्ययन करते हैं, उनके सामने यह समस्या नहीं आती। सत्र प्रारंभ से ही वे 'टाइमटेबल' बनाकर अध्ययन करते हैं, उन्हें परीक्षा भयभीत नहीं करती। इसके विपरीत जो छात्र प्रवेश के बाद यह भूल जाते हैं कि उन्हें परीक्षा भी देनी है, वे ही परेशान होते देखे जाते हैं।



जो विद्यार्थी हर रोज पढ़ने का बहाना बनाकर पुस्तक तो साथ में लिए रहते हैं, पर उनका मन कहीं और होता है तथा आँखें किताब पर टिकी होती हैं। ऐसे विद्यार्थी को पाठ किस प्रकार याद हो सकता है? पुस्तकें खोलकर पाठ पढ़ने का बहाना बनाने से परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की जा सकती। इस प्रकार से विद्यार्थी स्वयं को धोखा देते हैं। ऐसे विद्यार्थी किसी भी तरह की परीक्षा में सफल नहीं हो सकते। जो तैयारी नहीं कर पाते, वे या तो परीक्षा ही नहीं देते, यदि देते भी हैं तो असफल हो जाते हैं। परीक्षा डर की वस्तु नहीं है, उससे न तो घबराना चाहिए और न ही परीक्षा छोड़नी चाहिए।


अब प्रश्न उठता है कि परीक्षा की तैयारी किस तरह की जाए ? हर कक्षा का पाठ्यक्रम कक्षा के स्तर के अनुसार बोर्ड या विश्वविद्यालय बनाता है। प्रवेश कक्षा से ही परीक्षा प्रारंभ हो जाती है । शिक्षक छात्र को परीक्षा हेतु शिक्षा देता है। विद्यार्थी को चाहिए कि वह हर रोज अपने कक्षा व गृहकार्य को याद करता रहे । ज्यों-ज्यों पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए, अगला पाठ याद कंरने के साथ-साथ पिछले पाठों की पुनरावृत्ति भी नियमित रूप से की जाए।


कक्षा में पाठ को ध्यानपूर्वक सुनें, घर पर इसका अध्ययन कर स्मरण करें। विद्यालय के पश्चात् विद्यार्थी अधिकतर समय घर या छात्रावास में व्यतीत करता है। विद्यार्थी को चाहिए कि वह प्रतिदिन प्रातः काल उठकर शौच आदि करके विद्यालय जाने से पूर्व पढ़ाया गया पाठ स्मरण करे और पढ़ाए जाने वाला पाठ पढ़कर जाए। इस प्रकार के अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को पढ़ाया गया पाठ शीघ्र समझ में आता है।'ज्यों-ज्यों भीजै कमरी, त्यों-त्यों भारी होई' अर्थात् जो छात्र ऐसा नहीं करते, वे अध्ययन सुचारु रूप से नहीं करते, ऐसे छात्रों को धीरे-धीरे पाठ्यक्रम पहाड़-सा लगने लगता है।


विद्यार्थी को चाहिए कि समय-सारणी बनाकर विद्यालय के पश्चात सुबह तथा शाम की हर विषय की तैयारी प्रारंभ से ही करता जाए। परीक्षा आने के पहले प्रत्येक विषय को क्रमशः दोहराता जाए, जिससे कि विषय भली-भाँति याद हो जाए। समय-समय पर लिखकर भी इसका अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार के अभ्यास से परीक्षा में लिखने की तैयारी हो जाती है। लिखते समय प्रश्न संतुलन का भी ध्यान रखना चाहिए, जिससे समय से सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया जा सके।


विद्यार्थी को इन सभी बातों को ध्यान में रखकर तैयारी करनी चाहिए। इन सबसे परीक्षा की तैयारी सरल हो जाती है। जो विद्यार्थी प्रारंभ से ही तैयारी करते हैं, वे परीक्षा देने के लिए प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही परीक्षा का समय आता है, वे उत्साह से परीक्षा देते हैं। जो विद्यार्थी नियमित अध्ययन नहीं करते, उन्हें परीक्षा से भय लगता है। वे असफल हो जाते हैं और अपना जीवन कष्ट में डाल देते हैं। अत: विद्यार्थी को चाहिए कि वे नियमबद्ध हो परीक्षा की तैयारी करे । परीक्षा किसी भी प्रकार की हो, उससे कभी भयभीत नहीं होना चाहिए।

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