मनुष्य जीवनपर्यंत जिस तत्व की रक्षा करने के लिए चिंतित रहता है-वह है उसका चरित्र। चरित्र के रूप में हम मनुष्य के संपूर्ण कार्यकलाप व आचरण को शामिल करते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य जो कुछ करता है, उससे उसका चरित्र बनता है। चरित्र की महत्ता का वर्णन इस कथन से स्पष्ट हो जाता है-"If wealth is lost, nothing is lost, if health is lost, something is lost, if character is lost, everything is lost."
चरित्र के नष्ट होने से धन, सत्ता, स्वास्थ्य का कोई महत्व नहीं रह जाता। सफल मानव वह है जो भयंकर बाधाओं में भी अपने जीवनमूल्यों को नहीं छोड़ता और जीवन रूपी नैया को पार लगाता है। वह दुनिया के आकर्षणों से दिग्भ्रमित नहीं होता, विधाता के विधान से नहीं घबराता। ऐसे मनुष्य संपूर्ण मानव-जाति के लिए प्रकाश-स्तंभ का कार्य करते हैं।
चरित्र-शक्ति से ही मानव-जीवन सफल बनता है। यह शक्ति मनुष्य को आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, शौर्य, कार्यचातुर्य आदि की हैं। इसी के कारण मनुष्य निर्भीक होकर कार्य करता है। इस शक्ति से निर्मित व्यक्ति आतंक व भय से नहीं घबराता, क्योंकि धात्री इस शक्ति के सम्मुख विरोधी की पाशविक शक्ति भी झुक जाती है। महात्मा गांधी, महात्मा बुद्ध, दयानंद सरस्वती, विवेकानंद आदि की चारित्रिक शक्ति से विरोधियों को परास्त होना पड़ा था।
हर मानव जीवन के आदर्श के अनुसार अपने चरित्र का संगठन करता है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसे कदम-कदम पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। चरित्र के बिना वह आदर्श जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। अतः चरित्र शक्ति की महती आवश्यकता है। इसमें वह शक्ति विद्यमान है, जो विद्या, बुद्धि और संपत्ति में नहीं।
कितने ही महर्षियों ने इसी कारण बड़े-बड़े प्रलोभन ठुकरा दिए तथा बड़े-बड़े आतंकों की उपेक्षा की। हमारे महापुरुष आदर्श चरित्र के कारण ही विश्व में वंदनीय हैं। चरित्र के बिना मानव ही नहीं, बड़े-बड़े राष्ट्र भी ध्वस्त हो जाते हैं।
चरित्र से तात्पर्य कामपरक आचरण की पवित्रता से लिया जाता है। यह धारणा पूर्णतया सही नहीं है। कामपरक आचरण चरित्र का अंग है, साथ ही चरित्र में गुण व कार्यक्षमता का भी समावेश है। चोरी करने वाला, शराब पीने वाला, कामचोर, रिश्वतखोर आदि व्यक्ति कामपरक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद चरित्रवान नहीं कहे जा सकते। मन और तन की पवित्रता के साथ कर्मपरक शुद्धता भी चरित्र का अंग होती है। यदि कोई व्यक्ति देशद्रोह करता है तो वह सबसे भ्रष्ट चरित्र का होता है। समाज की सेवा, परोपकार, गरीब व्यक्तियों की सहायता आदि सभी कार्य चरित्र के अंतर्गत आते हैं।
इस प्रकार चरित्र का रूप व्यापक है। यह व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक जीवन को अपने में समाहित करता है। मानव-जीवन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने चरित्र को ऊँचा बनाए तथा उसके आधार पर आने वाले व्यक्तियों को भी शिक्षा दे। चरित्रवान व्यक्तियों के कारण ही समाज व राष्ट्र का चरित्र बनता है।
Great
ReplyDeleteधन्यवाद!☺️
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