विद्या मनुष्य का तीसरा नेत्र है। विद्या की प्राप्ति उसी को हो सकती है, जो निरंतर अध्ययन करता रहता हो तथा जो अध्ययन को आनंद का विषय अनुभव करे। पुस्तकें मानव की सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं। मनुष्य की मित्रता की एक सीमा होती है। मित्रता केवल जीवित रहने तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त मनुष्य का मन स्थिर नहीं होता। समय व परिस्थितिनुसार कोई किसी का दुश्मन या मित्र हो सकता है। इसके विपरीत, ज्ञान अमर है। पुस्तकें हज़ारों वर्षों तक मनुष्य का मार्गनिर्देशन करती हैं।
संसार का इतिहास खोलने से पता चलता है कि विश्व में जितने भी महान महापुरुष हुए हैं, उनकी सफलता का मूलमंत्र अध्ययन है। गांधी जी के संबंध में कहा जाता है कि वे अवकाश का एक भी क्षण ऐसा नहीं जाने देते थे जिसमें वे कुछ पढ़ते न हों। लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, जवाहरलाल नेहरू, जॉर्ज वाशिंगटन, मार्क्स आदि महान नेताओं ने जो महाग्रंथ मानव-जाति को प्रदान किए, वे उनके अध्ययन के ही परिणाम थे लोकमान्य तिलक ने 'गीता-रहस्य' नामक महान पुस्तक काले पानी की सजा के दौरान लिखी। वीर सावरकर का 'सन् 1857 की क्रांति' नामक खोजपूर्ण ग्रंथ भी कारागार में तैयार हुआ। ये लोग जेल के खराब वातावरण में रहकर इतना उत्तम साहित्य इसलिए दे सके क्योंकि वे अध्ययन को आनंद का विषय मानते थे।
मनुष्य दिन- भर दुकान, दफ़्तर या कारखाने में काम करने के बाद मनोरंजन करना चाहता है। पहाड़ की चोटियों पर मोर्चा संभाले जवान या भीषण बीहड़ों में विभिन्न योजनाओं पर काम करने वाले अधिकारी खाली समय में विक्षिप्तता की स्थिति में पहुँच जाएँ, यदि उन्हें पढ़ने को पुस्तकें या पत्रिकाएँ आदि न प्राप्त हों। अपनों से दूर होने पर पुस्तकें ही एकमात्र साथी होती हैं। किसी सभा, गोष्ठी या बैठक में उपस्थित हुए बिना ही, हम मूल्यवान विचारों को उसी प्रकार प्राप्त कर लेते हैं, जैसे नगरों में रहने वाली जनता प्राप्त करती है। यह सब अध्ययन का ही सुपरिणाम है।
आज मनोरंजन के अनेक साधन मिलते हैं। चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर आदि के द्वारा मानव असीमित तथा मनचाहा आनंद प्राप्त कर सकता है, परंतु इन साधनों से प्राप्त आनंद स्थायी नहीं होता। अली बाबा चालीस चोर' कहानी पर आधारित अनेक फ़िल्में बन चुकी हैं, परंतु उन्हें देखने के बावजूद व्यक्ति उसकी कहानी को पढ़ना चाहता है। पुस्तकों में सुरक्षित ज्ञान और मनोरंजन की शक्ति अजर और अमर है। उनके द्वारा प्राप्त होने वाला आनंद चिरस्थायी है। सिनेमा, टेलीविज़न, कंप्यूटर आदि साधनों से मानव स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ सकते हैं, किंतु पुस्तकें हमारे चरित्र को उच्च स्तर पर पहुँचाती हैं।
अध्ययन के आनंद की कोई तुलना नहीं है। एक विचारक का यह कहना ठीक ही है-" पूरा दिन मित्रों की गोष्ठी में बरबाद करने के बजाय प्रतिदिन केवल एक घंटा अध्ययन में लगा देना कहीं अधिक लाभप्रद है।" अध्ययन के लिए न कोई विशेष आयु है और न ही उसका समय निर्धारित है। अध्ययन मानव-जीवन का अटूट अंग है कविवर रहीम ने कहा है :-
उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय।
कवि वृंद भी कहते हैं :-
सरस्वती भंडार की बड़ी अपूरब बात।
ज्यों-ज्यों खरचे त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात।।
अध्ययन मनुष्य की चिंतनशक्ति और कार्यशक्ति बढ़ाता है। यह कायरों में शक्ति तथा निराश व्यक्तियों में आनंद का संचार करता है। अध्ययन के बिना मनुष्य जीवन अधूरा है। हर व्यक्ति अपनी आयु, रुचि के अनुसार अध्ययन करता है। किसी को विज्ञान पढ़ना पसंद है तो कोई कविता पढ़ना चाहता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि अध्ययन किन पुस्तकों या विषय का किया जाए और कैसे? कुछ लोग बहुत ज्यादा अध्ययन करते हैं, परंतु फिर भी पिछड़े हुए होते हैं, अधिक अध्ययन से स्वास्थ्य व आजीविका में भी बाधा होती है। केवल किताबी कीड़ा बनकर रहना उचित नहीं है। इसके साथ-साथ जीवन के विकास की अन्य बातों का भी ध्यान रखना ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त, जीवन को सत्पथ पर ले जाने वाले साहित्य का भी अध्ययन करना चाहिए। इसके लिए पुस्तकों के चयन में सावधानी बहुत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, केवल पढ़ने मात्र से अध्ययन नहीं होता। यह मनन से होता है। अतः अध्ययन का मूल मंत्र है-पढ़ो, समझो और ग्रहण करो।
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