आज का विद्यार्थी


विज्ञान की प्रगति, नई शिक्षा, नए युग के कारण समाज में चारों तरफ 'विद्यार्थी' के बारे में चर्चा होने लगी है। समाज का हर वर्ग विद्यार्थी' से बहुत अधिक अपेक्षाएँ करने लगा है और विद्यार्थी की स्थिति अभिमन्यु के समान हो गई है. जो समस्याओं के चक्रव्यूह से घिरा हुआ है। जिस प्रकार अभिमन्यु को सात शत्रु महारथियों ने घेर लिया था, उसी प्रकार आज के विद्यार्थी को राजनीति, अर्थतंत्र, शिक्षा जगत्, समाज, अधिकारी-शासक वर्ग आदि ने घेर रखा है। उनके चक्रव्यूह में वह स्वयं को अकेला महसूस कर रहा है।


आधुनिक विद्यार्थी का सबसे पहला संघर्ष खुद को विद्यार्थी बनाने का है। स्कूलों में दाखिले के लिए भारी फीस, सिफारिशें आदि की जरूरत होती है। सरकारी दावों के बावजूद सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। अतः अभिभावक प्राइवेट स्कूलों को तरफ़ लपके चले जाते हैं। विद्यार्थी को येन-केन-प्रकारेण दाखिला मिल भी जाए तो उसे दो चुनौतियों का सामना करना पड़ता है-पहली अच्छे अंक पाने की, दूसरी नियमपूर्वक अपनी शिक्षा में लगे रहने की। अच्छे अंक पाने के लिए उसे योग्य अध्यापक, अच्छे स्तर की किताबें तथा पर्याप्त समय, ये सभी चीज़ें किसी भाग्यशाली विद्यार्थी को ही मिल पाती हैं। योग्य अध्यापक भी आधुनिकता के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। वे उन्हीं विद्यार्थियों की सहायता करते हैं, जो अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं या जो उनके काम आ सकें। विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता. क्योंकि अधिकतर स्कूल उनके निवास स्थान से बहुत दूर होते हैं और स्कूलों में भी शिक्षण-समय बढ़ा दिया गया है।


विद्यार्थी पर फैशन, राजनीति, टेलीविज़न आदि इस तरह छा गए हैं कि शिक्षा उन्हें फालतू लगने लगी है राजनीतिज्ञ विद्यार्थियों का प्रयोग आंदोलनों में करते हैं। चैनलों पर कार्यक्रमों की बाढ़ उन्हें पढ़ने से हतोत्साहित करती है। व्यापारियों के लिए विद्यार्थी एक वस्तु बन गया है।


बेरोज़गारी की स्थिति को देखकर आज का विद्यार्थी समझ चुका है कि वह चाहे कितनी ही मेहनत कर ले, चाहे कितने ही अंक प्राप्त कर ले, उसे मनमर्जी का व्यवसाय नहीं मिलेगा ऊँची-ऊँची डिग्री लेकर भी नौकरी सिफ़ारिश या रिश्वत के बल पर ही मिलती है। यह देखकर आधुनिक विद्यार्थी सोचता है कि वह व्यर्थ में अपने जीवन के दस -पंद्रह वर्ष क्यों गुजारे ? भविष्य की अनिश्चितता उसे उत्साहहीन कर रही है।


जब विद्यार्थी समाज, अध्यापक व परिवार की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता तो उसे तिरस्कार का सामना करना पडता है। अच्छे अंक नहीं आने पर माता-पिता उसे धिक्कारते हैं। समाज में उसे तरजीह नहीं दिया जाता। वह समाज के नियमों की अवहेलना करता है। पर आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि विद्यार्थी के ऐसे व्यवहार के लिए जिम्मेदार कौन है ? जिम्मेदार लोग अपनी परिस्थितियाँ, अपनी जिम्मेदारी को भूल जाते हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि विद्यार्थी वही करेगा जो उसके बड़े करेंगे।


इसका अर्थ यह नहीं है कि हर तरफ अँधेरा है। इन विकट दशाओं में भी आज का विद्यार्थी सतर्क है। वह पुरानी पीढ़ी की निरर्थकता को पहचान चुका है। वह समझ चुका है कि पुरुषों के पास देने के लिए कुछ नहीं है। वह अपनी योग्यता व क्षमता से आने वाली चूनौती को खत्म करता चला जाता है। वह डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, पत्रकार, वैज्ञानिक या व्यवसायी बनकर समाज को विकसित बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। वह जहाँ कहीं, समाज के किसी भी क्षेत्र में अपना आह्वान सुनता है, वहाँ तुरंत उपस्थित होकर मैदान संभाल लेता है। आज का विद्यार्थी अपनी वास्तविक स्थिति व शक्ति से परिचित हो चुका है। वह नई-नई तकनीकों की जानकारी रखता है। वह जानता है कि छात्रशक्ति' ही 'राष्ट्रशक्ति' है। वह स्वयं को स्थापित करना जानता है। वह अर्जुन की तरह लक्ष्य हासिल करके समाज को दिखाता है।

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