आदर्श विद्यार्थी पर निबंध


विद्यार्थी' शब्द दो शब्दा-'विद्या' और 'अर्थी' के मेल से बना है। इसका अर्थ है- विद्या (ज्ञान) को चाहने वाला अर्थात् विद्या प्राप्त करने वाले को 'विद्यार्थी' कहते हैं। आदर्श विद्यार्थी वह है, जो तन और मन से ज्ञान-प्राप्ति के प्रति अनुराग रखता हो। पढ़ने-लिखने में गहन रुचि के साथ-साथ विद्यार्जन ही जिसका लक्ष्य हो, वही आदर्श विद्यार्थी कहलाने योग्य होता है। आदर्श विद्यार्थी' शब्द सुनते ही हमारे मन-मस्तिष्क में ऐसे बालक या छात्र की छवि उभरती है, जो समय से नियमित रूप से विद्यालय जाता हो, मन लगाकर पाठ पढ़ता हो, अध्यापकों की आज्ञा का पालन करता हो, घर आकर रुचिपूर्वक पाठो को दोहराता हो, माता-पिता का कहना मानता हो तथा यथासमय मन लगाकर पढाई लिखाई करता हो। इसके अलावा वह अपने सहपाठियों से विनम्र व्यवहार करता है, सदा सत्य बोलने का प्रयास करता है, आज्ञाकारी सुशील होने के साथ-साथ परिश्रम से जी नहीं चुराता। ऐसा विद्यार्थी बनना आसान नहीं है। इसके लिए उसे कठिन परिश्रम तथा अपनी आदतों का परिमार्जन करना पड़ता है। इसके अलावा प्राचीन काल में विद्यार्थी के ये पाँच लक्षण माने जाते थे :-

काक चेष्टा, बको ध्यानम्, श्वाननिद्रा तथैव च

अल्पाहारी, गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्।


अर्थात् विद्यार्थी को कौए के समान लक्ष्य के प्रति चेष्टा ( लगन), बगुले की तरह ध्यान लगाने की दक्षता, कुत्ते के समान हल्की नींद में सोने वाला, कम भोजन करने वाला और घर से दूर रहकर विद्यार्जन करने वाला होना चाहिए। आदर्श विद्यार्थी को रट्टू प्रवृत्ति का नहीं होना चाहिए। उसे किताबी कीडा भी नहीं बनना चाहिए। ऐसा करने से उसके स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पडता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है इसलिए आदर्श विद्यार्थी को अध्ययन के साथ साथ खेल-कूद व्यायाम योग आदि पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए। यदि उसका स्वास्थ्य ही ठीक नहीं होगा तो वह पढ़ाई लिखाई में कैसे मन लगा सकेंगा।


आदर्श विद्यार्थी को ब्रह्ममुहूर्त में शय्या का त्याग कर देना चाहिए। यह काल पढाई सैर, व्यायाम आदि के लिए अत्युत्तम होता है। भार की शांत बेला उसके अध्ययन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। एक कहावत है कि Early to bed and early to rise, makes a man healthy. wealthy and wise अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त में उठने से व्यक्ति स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनता है। आदर्श विद्यार्थी को इसका पालन अवश्य करना चाहिए। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि और उनके शिष्य ब्रहममुहूर्त में उठकर दैनिक कार्य करते हुए स्वस्थ रहते थे।


आदर्श विद्यार्थी केवल विषय के प्रति ही नहीं बल्कि अपने सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत रहता है। इसके लिए वह पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अलावा विविध विषयों की पत्रिकाएँ पुस्तकें और समाचार-पत्र पढ़ता है। इससे एक ओर जहाँ उसका सामान्य ज्ञान बढ़ता है। वहीं उसके विषय-ज्ञान में गहराई आती है। इससे उसका आत्मविश्वास मज़बूत होता है वह पढाई के प्रति उत्साहित रहता है।


आदर्श विद्यार्थी अपने कर्तव्य और दायित्व का ज्ञान रखता है। वह इनका पालन करता है। वह समाज में सबसे मित्रवत् व्यवहार करता है। यह लडाई-झगडे से कोसों दूर रहकर कुसंगति से बचता है। वह धूम्रपान जैसे व्यसनों से बचता है। वह समाज के नियमों का पालन करते हुए मर्यादित आचरण करता है। वह किसी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करता है। वह कमजोर विद्यार्थियों सहपाठियों गरीबों एवं दीन दुखियों की मदद करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अशिक्षितों को पढ़ाने जैसे सामाजिक कार्यों में रुचि लेता है। इससे उसमें सामाजिकता का गुण विकसित होता है। वह मिल जुलकर प्रेम एवं सद्भावपूर्वक रहता है। इस प्रकार वह अन्य बच्चों के लिए आदर्श बन जाता है।


आदर्श विद्यार्थी भी हमारे समाज का अंग होते हैं, इसलिए उन्हें अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए। समाज की उन्नति एवं प्रगति के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों, जैसे-साक्षरता अभियान वृक्षारोपण अभियान सफ़ाई अभियान आदि में सोत्साह भाग लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिस देश जाति और समाज में उसने जन्म लिया है, पल-बढ़कर और बड़ा हुआ है, इस देश, जाति और समाज के प्रति उसे अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए। उसे अपने देश के प्रति अगाध प्रेम-लगाव रखना चाहिए। उसमें देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए। उसे अपनी जन्मभूमि की रक्षा करते हुए सर्वस्व अर्पित कर देना चाहिए। आदर्श विद्यार्थी बनना आसान नहीं, बल्कि कठोर तप करने जैसा है. फिर भी देश के प्रत्येक बालक को आदर्श विद्यार्थी बनकर अनुकरणीय व्यवहार करना चाहिए।

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