किस भी क्षेत्र में दो तरह के बदलाव होते हैं-पहला वांछित और दूसरा अवाछित। अवांछित बदलाव न चाहते हुए भी अपने-आप होते जाते हैं। इस भौतिकवादी युग में मनुष्य के आचार- विचार रहन-सहन, जीवन-शैली आदि में परिवर्तन हुए हैं। जीवन-मूल्यों में गिरावट आई है। उसमें लोभ, तृष्णा, स्वार्थवृत्ति बढ़ रही है। वह अपनी वस्तुओं का अधिकाधिक दिखावा करने लगा है, जिससे समाज में अशांति बढ़ रही है। इसके विपरीत भारतीय संस्कृति सदा से ही 'सादा जीवन उच्च विचार' पर ज़ोर देती आ रही है। सादा जीवन उच्च विचार' का सिद्धांत दिखावे का सिद्धांत न होकर सुख एवं शांति का आधार है। यह व्यक्ति में संतोष का भाव पैदा करता है, जिससे व्यक्ति सुखी बनता है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सदैव सादा जीवन जिया और सुखी रहे। वे अपने उच्च विचारों और कार्यों से लोगों का कल्याण करते रहे। उनके इसी चिंतन-मनन और जीवन-शैली ने भारतीय संस्कृति को विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृतियों में ला खड़ा किया। इसके अलावा हम अन्य महापुरुषों की जीवन-शैली और रहन-सहन का ढंग देखें तो वहाँ भी सादा जीवन उच्च विचारों के दर्शन होते हैं।
वर्तमान में उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण लोगों को स्वार्थी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। उनके जीवन की सरलता और सहजता विलुप्त होती जा रही है। सादा जीवन ही सुख का आधार है। इसे अपनाकर ही जीवन में सुख-शांति पाई जा सकती है, ऐसा हमारे ऋषि-मुनि और महापुरुष कह गए हैं। जीवन में सादगी से दूर रहने वाले लोग संतुष्टि से कोसों दूर रहते हैं। उन्हें जितना ही मिलता है, उतना ही कम लगने लगता है। उससे और ज्यादा पाने की चाहत में वे अपना मानसिक सुख-चैन खो बैठते हैं। इतिहास इस बात का गवाह रहा कि दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनका जीवन सादगी से भरा था। परंतु उनके विचार अत्यत उच्चकोटि के थे। वे दिखावा और आडंबर से कोसों दूर रहते थे। समाज में कुछ लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि उनके आडबर और दिखावे से लोग प्रभावित होंगे, पर यह उनकी भूल मात्र है। इस तथ्य में कोई सच्चाई नहीं है। यदि ऐसा होता तो सादगी की प्रतिमूर्ति स्वामी विवेकानंद अमेरिका में विश्वभर से आए जनसमूह पर अपना प्रभुत्व न जमा पाते और न सबकी आँखों का तारा बन पाते। उन्होंने लोगो पर जो प्रभाव डाला था, उसका कारण उनके उच्च विचार थे।
ऋषि-मुनियों ने अपने उच्च विचारों से ही जनमानस का मार्गदर्शन किया। उनके उच्च विचार ही सारी दुनिया के सुख का आधार बन गए। उच्च विचार ही सच्चे सुख का आधार होते हैं। उच्च विचारों से प्राप्त सुख की अनुभूति अद्भुत होती है। इस भौतिकवादी युग में सुख की परिभाषा बदल गई है। लोग अधिकाधिक वस्तुओं का संग्रह करने और उनके उपभोग को सुख मानने लगे हैं। इसी सुख की प्राप्ति के लिए अधिकाधिक उपभोग में लगे हैं। ये लोग वस्तुओं में सुख तलाशते हैं। परंतु इससे क्षणिक शारीरिक सुख की प्राप्ति भले ही हो जाए. पर मानसिक सुख कोसों दूर ही रहता है। यह मानसिक सुख वस्तुओं से नहीं, बल्कि उच्च विचारों से पाया जा सकता है। वस्तुओं का संग्रह और उपभोग समाज में अशांति को जन्म देता है, वर्ग-भेद पैदा करता है। 'सादा जीवन उच्च विचार' आत्मसतुष्टि देता है तथा लोगों के लिए अनुकरणीय बनता है। इससे लोगों का कल्याण और उपकार करने की भावना का उदय होता है। दूसरों का कल्याण करने से कभी भी समाज में अशांति और दुख नहीं पैदा होता। भारतीय संस्कृति सदा से सादा जीवन उच्च विचार' और परोपकार की पक्षधर रही है। हमें भारतीय संस्कृति के आदर्शों को अपनाना है, जिससे दुनिया को सुखमय बनाने में हम अपना योगदान दे सकें।
हमारे देश में अनेकानेक महापुरुष हुए हैं, जिनका जीवन अत्यंत सादा था। वे अत्यंत साधारण-से दिखते थे, पर उनके विचार अत्यंत उच्चकोटि के थे। उन्होंने अपने उच्च विचारों से दुनिया को अपना मुरीद बना लिया। उनका जीवन दूसरों के लिए आदर्श बन गया। ऐसे महापुरुषों में महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, प्रेमचंद आदि मुख्य हैं। इनमें गांधी जी सर्वोपरि थे, जिन्होंने देश के गरीबों को देखकर आजीवन कम-से-कम कपड़े में काम चलाया वे मात्र एक धोती पहनते थे और आवश्यकता होने पर उसका आधा भाग ओढ़ लेते थे। वे सादगी की सच्ची मिशाल थे। उन्हें छोटे-से-छोटा काम करने में भी शर्म नहीं आती थी। उनके विचारों का लोहा पूरी दुनिया ने माना। उनके एक आह्वान पर सारा भारत उनके साथ हो लेता था। भारत को आजादी में उनके विचारों का बड़ा योगदान था उन्होंने 'सादा जीवन उच्च विचार' के आदर्श को सार्थक कर दिया। हम भारतीयों को 'सदा जीवन उच्च विचार' के आदर्श को जीवन में अपनाना चाहिए, ताकि हुमें मानसिक सुख-शांति प्राप्त हो सके।
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