ऐतिहासिक स्थल की सैर


पूरी दुनिया में भारत हो एक ऐसा देश है, जहाँ प्राकृतिक विविधताएँ मिलती हैं, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं। इसके कारण यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। बर्फ से ढँके शिखर. कल-कल करते झरने, चाँदी-सी बहती नदियाँ, नाना रंगों व गंधों से भो कुल सूर्य का सुनहरा प्रकाश-प्रकृति का हर रूप यहाँ देखने को मिलता है। इसी तरह अनेक संस्कृतियों के कारण यहाँ अनेक तरह के मंदिर गुरुटकारे, मकबरे, मस्जिद, महल आदि पाए जाते हैं जो बरबस लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं।


गत सप्ताह हमने योजना बनाई कि भारत का कोई दर्शनीय स्थल देखा जाए। मित्रों की राय अलग-अलग थी । कोई जयपुर जाना चाहता या के कोई लखनऊ। किसी ने अजंता-एलोरा की गुफाएँ देखने की इच्छा जताई तो किसी ने दिल्ली घूमने का इरादा जताया। अंत में यही निर्णय हुआ कि आगरा के ताजमहल का भ्रमण किया जाए। हम छह मित्र थे। हमने दिल्ली से आगरा के लिए गाड़ी पकड़ी। गाई में बेहद भीड़ यी। किसी तरह आगरा पहुंचे तो वहाँ टैक्सी वालों ने घेर लिया। सभी ने 'फँसा मुर्गा' जानकर ताजमहल तक जाने के लिए अनाप-शनाप किराए माँगे। हमने पुलिस वाले की सहायता ली और सरकारी बस से ताजमहल पहुँचे । वहाँ जाकर अंदर प्रवेश के लिए टिकट लो और अपनी मंजिल की तरफ बढ़े। ताजमहल का प्रवेशद्वार लाल पत्थरों से बना हुआ है उन पत्थरों पर कुल की आयते खुदी हुई हैं। वहाँ से आगे बढ़ते हुए हम बगीचे में पहुँचे। एक पंक्ति में उछलते हुए फव्वारे, मखमली घास, पेड़ों की मंखला- सब में एक नया आकर्षण था। तभी सामने निगाह पड़ी तो आँखें खुली-की-खुली रह गईं।


सने दुनिया का सव्वा आश्चर्य था-ताजमहल। यह सफेद संगमरमर के चबूतरे पर बना हुआ है। चबूतरे के चारों कोनों पर श्वेत संगमरमर की ऊैची-ऊँची मीनारें हैं। मुख्य भवन के मध्य बड़ा हॉल है। उसके बीच में मुमताज महल और शाहजहाँ की संगमरमरी कबे हैं। पीछे यमुना नदी बहती है। ताजमहल भी अपने-आप में इतिहास है। आज से तीन सौ वर्ष पूर्व शाहजहाँ ने अपनी प्रिय रानी मुमताज महल की स्मृति में इसे बनवाया था। शाहजहाँ मुमताज से बहुत प्रेम करता था। एक बार मुमताज बीमार पड़ गई और मृत्यु को प्राप्त हो गई। सम्राट ने अपनी प्रेयसी की स्मृति में ताजमहल बनवाने का फैसला किया।


श्वेत संगमरमर के इस भवन को बनवाने में बाईस वर्ष का समय लगा। इसे बनाने में लगभग बीस हजार शिल्पी व मजदूर निरंतर लगे रहे। उस समय इस पर तीन करोड़ रुपये खर्च हुए थे। शाहजहाँ व उसकी बेगम मुमताज के अनोखे प्रेम का प्रतीक यह ताज आगरे का नहीं, अपितु सारे संसार का ताज है। यह सच्चे प्रेम का प्रतीक है। ताज का सौंदर्य सुबह, शाम व रात्रि में अद्भुत हो उठता है। चाँदनी रात में तो ऐसा लगता है, मानो मुमताज व शाहजहाँ की रूहें जिंदा हो गई हों।


ताजमहल अप्रतिम सौंदर्य का धनी है, परंतु यह भी उतना ही सच है कि शाहजहाँ की भवन निर्माण कला के प्रति दीवानगी ने मुगल साम्राज्य को खोखला कर दिया। प्रगतिवादी कवि इसे शोषण का रूप बताते हैं। साहिर लुधियानवी भी यही कहते हैं :-  इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक


ये यह सहन नहीं कर पाते और कहते हैं :- 

“मेरे महबूब, कहीं और मिलाकर मुझसे।"



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