खेलकूद में रुचि बढ़ना देश के स्वास्थ्य का प्रतीक है. देशवासियों की समृद्धि का सूचक है। आजकल खेलों के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही है। इस दीवानगी को देखते हुए यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या यह भी स्वस्थ परंपरा का प्रतीक है ? इसमें कोई दो राय नहीं कि पोषक भोजन के बिना मानव स्वस्थ नहीं रह सकता। यह भी उतना ही सच है कि अच्छे भोजन के साथ यदि मनुष्य खेलों में भाग न ले तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता। इसलिए खेलों का नियमित अभ्यास करना स्वास्थ्य के लिए उतना ही आवश्यक है. जितना कि संतुलित भोजन।
भारत में खेलों की परंपरा पुरानी है। यह परंपरा आज भी किसी-न-किसी रूप में विद्यमान है। यहाँ के पुराने खेल कुश्ती, कबड्डी, तैराकी तथा नए खेल क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, टेनिस आदि में युवा बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। वैसे तो जीवन की सफलता के लिए शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों में से कोई भी एक शक्ति किसी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। हालाँकि आम जनमानस में प्रचलित उक्ति है कि 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है'। इसलिए शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ व चुस्त बनाने के लिए कई प्रकार के शारीरिक अभ्यास किए जाते हैं. किंतु इनमें सबसे प्रमुख खेलकूद है। बिना खेलकूद के जीवन अधूरा रह जाता है। कहा गया है-'सारे दिन काम करना और खेलना नहीं, यह होशियार को मुर्ख बना देता है।
खेलों से हमारा जीवन अनुशासित और आनंदित होता है। दिन-रात पढ़ाई में लगे रहने वाले विद्यार्थी की शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है। इस दशा में खेल ही शरीर में शक्ति का संचार करते हैं। केवल काम में तल्लीन रहना अथवा खेल में व्यस्त रहना कोई अच्छी बात नहीं है। जीवन में गतिशीलता तभी आती है, जब हम खेलने के समय खेलते हैं और काम करने के समय काम करते हैं। खेल खिलाड़ी की आत्मा है। खेल की भावना' उसकी आत्मा का श्रृंगार है इसी भावना के कारण खिलाड़ी सहयोग, संगठन, अनुशासन एवं सहनशीलता का पाठ सीखते हैं। खेलने वालों में संघर्ष करने की शक्ति आ जाती है। खेल में जीतने की दशा में उत्साह और हारने की स्थिति में सहनशीलता का भाव आता है। खेलते समय खिलाड़ी जीत हासिल करने के लिए अनुचित तरीके नहीं अपनाता है और पराजय की दशा में प्रतिशोध की आग में नहीं जलता है। उसमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव होता है।
खेल मनोरंजन का माध्यम भी है। खिलाड़ियों अथवा खेल-प्रेमियों-दोनों को खेलों से भरपूर मनोरंजन मिलता है। ऐसे लोग खेलों के मनोरंजन से वंचित रह जाते हैं जो सदैव काम में लगे रहते हैं। खेलों से मनुष्य अनुशासित जीवन जीना सीखता है। इससे मनुष्य नियमपूर्वक कार्य करने की शिक्षा लेता है। नियमपूर्वक कार्य करने से व्यवस्था बनी रहती है तथा समाज का विकास होता है। अनुशासन से मिले आदर से हम उत्साहित रहते हैं तथा जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं। यदि हम किसी काम में असफल भी हो जाते हैं तो भी हौसला नहीं छोड़ते, अपितु दुगने उत्साह से काम करने लगते हैं।
इस प्रकार खेलों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। ये हमारे जीवन को संपन्न व खुशहाल बनाते हैं। इनके महत्व को देखते हुए हमें खेलों से अरुचि नहीं रखनी चाहिए।
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