'भ्रष्टाचार' शब्द 'भ्रष्ट + आचार' दो शब्दों के योग से बना है। 'भ्रष्ट' का अर्थ है-मर्यादा से हटना या गिरना और 'आचार' का अर्थ है-आचरण। अर्थात् जब व्यक्ति अपनी वैयक्तिक, पारिवारिक तथा सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन कर, स्वेच्छाचारी हो जाता है, उस दशा में उसे भ्रष्टाचारी कहते हैं। भारत में अनेक समस्याएँ हैं। इन समस्याओं से मानवता दिन-प्रति-दिन दम तोड़ रही है। विकास हो रहा है, बड़े-बड़े कारखाने बन रहे हैं, भीड़ बढ़ रही है, परंतु आदमी छोटा होता जा रहा है, क्यों? क्योंकि भ्रष्टाचार का दानव हर क्षेत्र में उसे दबोच रहा है। भ्रष्टाचार का उद्भव कहाँ से हुआ? क्या यह प्राचीन संस्कृति की देन है या नई सभ्यता का उत्पाद? इतिहास पर नजर डालें तो यह विदेशियों की देन लगता है, जब यूरोपीय कंपनियों ने भारत में व्यापार व शासन करने की आज्ञा घूस देकर प्राप्त की। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे फैलाया। गाँव के चौकीदार को तीन रुपये मासिक वेतन देकर गाँव का गुप्तचर बना देना भ्रष्टाचार की इकाई का श्रीगणेश था। आज यह अनेक रूप में विद्यमान है; जैसे-रिश्वत, तस्करी, कालाबाजारी तथा भाई-भतीजावाद आदि। आज यह जीवन की हर परत में विद्यमान है। पुराने समय में मर्यादा तोड़ने वाले व्यक्ति का हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है, परंतु आज हुक्का-पानी बंद करने वाले भ्रष्टाचार से कुछ ज्यादा ही ओत-प्रोत हैं।
भ्रष्टाचार के मूल कारणों की खोज करें तो पता चलता है कि भौतिकवाद के कारण जीवन-मूल्यों में परिवर्तन आ गया है। आज हम विज्ञान की दुहाई देकर भौतिकवादी दर्शन के भक्त बन गए हैं। शिक्षा व विकास के नाम पर हमें अनेक सुविधाएँ चाहिए। धन के सामने अयोग्यता योग्यता बन जाती है। भ्रष्टाचार को सभी कोसते हैं, परंतु फिर भी यह बढ़ता जा रहा है। बच्चे के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक भ्रष्टाचार का असर है। अस्पताल में बच्चे के जन्म के समय भी घूस देनी पड़ती है। अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलानी हो तो डोनेशन देने से दाखिला होता है। खाद्य-पदार्थों में मिलावट की कोई सीमा नहीं है। हलवाई की सप्ताह भर पुरानी मिठाई कभी बासी नहीं होती है। नौकरी लेनी है तो उसके लिए भी रिश्वत देनी पड़ेगी। पुलिस व न्यायतंत्र का तो कहना ही क्या ? अपराध होने के घंटों बाद पुलिस डंडा हिलाती आती है और निरर्थक प्रश्न पूछकर चली जाती है। नेता वोट भी पैसे देकर लेता है, फिर जनता का शोषण करता है। बेटी के लिए अच्छा वर चाहिए तो अच्छा देहज देना होगा और अच्छे दहेज के लिए पिता को भ्रष्टाचार का आश्रय लेना पड़ता है। अब इस भ्रष्टाचार रूपी दानव का खात्मा कैसे हो? इस प्रश्न के समाधान के लिए हमें स्वयं से शुरुआत करनी होगी। हमें वैयक्तिक जीवन में होड़ से बचना होगा। सामाजिक स्तर पर उपेक्षा भी सहनी पड़ सकती है, क्योंकि जब तक सामाजिक दर्शन तथा स्तर पर सुधार नहीं होगा, भ्रष्टाचारी गलत तरीकों से धन उपार्जित कर समाज में प्रतिष्ठा पाता रहेगा और भौतिक सफलताओं की सीढ़ी पर चढ़ता जाएगा। सामाजिक स्तर पर ऐसे व्यक्तियों का बहिष्कार या उपेक्षा करनी होगी। सच्चे व ईमानदार व्यक्ति को वर्ग, जाति, आर्थिक दशा के स्तर पर भेदभाव किए बिना सम्मानित करना होगा।
राजनीतिक स्तर पर पहल करनी होगी। चुनाव जीतने के लिए अपनाए जाने वाले भ्रष्ट तरीकों पर लगाम लगानी होगी। संस्थाओं को चंदा काला धन छिपाने के लिए दिया जाता है। ऐसे दान को भी रोकना पड़ेगा। कानून को इतना सक्षम बनाना होगा कि भ्रष्टाचारी की पद-प्रतिष्ठा को एक ओर रखते हुए तुरंत कठोर दंड देने में सक्षम हो। व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वयं को परिवार के स्तर से उठाकर समाज व राष्ट्र से जोड़े तथा अपने कार्य की सीमा को विस्तृत करे।
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