उड़ रहा मनुज आकाश में, बल विज्ञान का तुम देख लो।
जल रहा मानव धरा पर, यह परिणाम भी तुम देख लो।
प्रदूषण का अभिप्राय है-प्राकृतिक वातावरण और वायुमंडल का दोषपूर्ण होना। प्रकृति स्वभावतया शुद्ध व स्वास्थ्यप्रद है। यदि वह किन्हीं कारणों से दूषित हो जाती है, तो मानव के स्वस्थ विकास के लिए खतरे उत्पन्न करती है। प्रदूषण एक प्रकार का धूम कोहरा है. जो जीव व पेड़-पौधों को नष्ट कर देता है। यहाँ तक कि इससे जड़ पदार्थ भी दूषित हो जाते हैं। आधुनिक युग की सबसे गंभीर समस्या वायु प्रदूषण है। वायु प्रदूषण के अनेक कारण हैं। प्रथम है-मानव की औद्योगिक प्रगति । जैसे- जैसे मशीनों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे वायुमंडल विषैला होता गया। किसी कवि ने ठीक ही कहा है :-
जो कारखाने भूमि पर हैं, चिमनियाँ धुआँ उगल रहीं।
साँस लेना भी कठिन है, वायुमंडल दूषित कर रहीं।
मशीनी उद्योग से जो कचरा निकलता है, उसे या तो जलाया जाता है या भराव के काम में लाया जाता है। कई बार ढेर लगा दिए जाते हैं, जिसके कीटाणु वातावरण दूषित करते हैं। परिवहन के साधन; जैसे-रेल, बस, कार, स्कूटर आदि से कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि जहरीली गैसें हर क्षण वायुमंडल में घुलती रहती हैं । ये सब जीवधारियों के अतिरिक्त नए-पुराने भवनों के लिए भी घातक हैं। अजंता के चित्रों का बदरंग होना इसी प्रदूषण का परिणाम है। वायु प्रदूषण से कैंसर, टी०बी०, श्वसन संबंधी बीमारियाँ आदि तेजी से फैल रही हैं। जल प्रदूषण भी आज भयंकर रूप धारण कर रहा है। नगरों के विकास से पुरानी शौच व्यवस्था में अंतर आ गया है। पहले खुले मैदानों या खेतों में मल-मूत्र के त्याग से भूमि को खाद के तत्व प्राप्त हो जाते थे, परंतु अब सीवरेज प्रणाली से प्राकृतिक असंतुलन हो गया है। इस प्रकार का मैला नदियों में डाला जाता है, जिससे पानी दूषित व ऑक्सीजनरहित हो जाता है। कारखानों से निकला प्रदूषित जल नदी-नालों में डाला जाता है। इनसे जीवधारी मर जाते हैं। इस जल की सिंचाई से उत्पन्न खाद्य-पदार्थ भी तत्वहीन हो जाते हैं। इससे पेयजल की समस्या बढ़ती जा रही है। जैसा कवि ने कहा है :-
इल प्रदूषण भी वायु और जल प्रदूषण की तरह हानिकारक है। इसका प्रमुख कारण है-कूड़ा-करकट की समस्या व रासायनिक खादों व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग। बड़े-बड़े कारखाने प्रतिदिन टनों व्यर्थ ठोस पदार्थ बाहर फेंकते ही हैं। घरों व बाजारों में भी उपभोक्ता काफी व्यर्थ सामग्री फेंकते हैं। कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण भूमि के लाभदायी जीवाणु मर जाते हैं। रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। आजकल परमाणु कचरा भी विश्व की भयंकर समस्या बन गया है, जिनके विकिरणों का प्रभाव काफी समय तक रहता है।
वर्तमान समय में, ध्वनि प्रदूषण विश्व के सामने चुनौती के रूप में उभरकर आ रहा है। वाहनों, कल-कारखानों, बारूद के फटने तथा रॉकेट आदि के चलने से तीव्र ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके प्रभाव से सिरदर्द, बहरापन, मानसिक परेशानी जैसे रोगों का उदय हो रहा है। प्रदूषण किसी भी रूप में हो, हर रूप में इसकी समस्या विकटतर से विकटतम होती जा रही है। प्रदूषण के कुप्रभाव के कारण आज ऋतु चक्र तथा मौसम-व्यतिक्रम दिखाई देने लगा है। वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि यदि इस प्रदूषण को रोका नहीं गया तो सवा सौ वर्षों बाद धरती पर जीवधारियों का रह पाना असंभव हो जाएगा। उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए 5 जून, 1977 को सारे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया गया। प्रदूषण रोकने के उपायों पर विचार किया गया। नगरों के आस - पास वन अथवा उपवन बनाने का कार्य, लघु उद्योगों को बढ़ावा देने, अवशिष्ट पदार्थों का सदुपयोग आदि उपायों पर समुचित अमल करने से पर्यावरण स्वच्छ रहेगा और पृथ्वी से जीव-जगत् का नाता कभी नहीं टूटेगा।
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