विज्ञापन


जब समाचार-पत्रों में सर्वसाधारण के लिए कोई सूचना प्रकाशित की जाती है तो उसको विज्ञापन कहते हैं। यह सूचना नौकरियों से संबंधित हो सकती है, खाली मकान को किराए पर उठाने के संबंध में हो सकती है या किसी औषधि के प्रचार से संबंधित हो सकती है। कुछ लोग विज्ञापन के आलोचक हैं। वे इसे निरर्थक मानते हैं। उनका मानना है कि यदि कोई वस्तु यथार्थ रूप में अच्छी है तो वह बिना किसी विज्ञापन के ही लोगों के बीच लोकप्रिय हो जाएगी, जबकि खराब वस्तुएँ विज्ञापन की सहायता से प्रचलित होने के बावजूद अधिक दिनों तक टिक नहीं पाएँगी, परंतु लोगों की यह सोच गलत है।


आज के युग में उत्पादों की संख्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है, ऐसे में विज्ञापनों का होना अनिवार्य हो जाता है। किसी अच्छी वस्तु की वास्तविकता से परिचय पाना आज के विशाल संसार में विज्ञापन के बिना नितांत असंभव है। विज्ञापन ही वह शक्तिशाली माध्यम है जो हमारी जरूरत की वस्तुएँ जुटाता है। यदि कोई व्यक्ति या कंपनी किसी वस्तु का निर्माण करती है और उसे बेचने के लिए उत्सुक रहती है तो उसे उत्पादक कहा जाता है। उन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने वाला उपभोक्ता कहलाता है। इन दोनों को जोड़ने का कार्य विज्ञापन करता है। वह उत्पाद को उपभोक्ता के संपर्क में लाता है तथा माँग और पूर्ति में संतुलन स्थापित करने का प्रयत्न करता है। पुराने जमाने में किसी वस्तु की अच्छाई का विज्ञापन मौखिक तरीके से होता था। काबुल का मेवा, कश्मीर की जरी का काम, दक्षिण भारत के मसाले आदि वस्तुओं की प्रसिद्धि मौखिक रूप से होती थी। उस समय आवश्यकता भी कम होती थी तथा लोग किसी वस्तु के अभाव की तीव्रता का अनुभव नहीं करते थे। आज समय तेजी का है। संचार क्रांति ने जिंदगी को 'स्पीड' दे दी है । मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं।


विज्ञापन के उचित प्रयोग से उत्पादक ग्राहकों के संपर्क में आता है । विज्ञापनों के अभाव में प्रिंट माध्यमों की रोचकता समाप्त हो जाती है। लोग जिस वस्तु की खोज में रहते हैं, विज्ञापन द्वारा ही उसे कम खर्च में सुविधा के साथ प्राप्त कर लेते हैं, यही विज्ञापन की पूर्ण सार्थकता है। विज्ञापन से व्यक्ति अपने व्यापार व व्यवसाय को फैला सकता है।


आधुनिक संसार विज्ञापन का संसार है। यदि हम किसी समाचार-पत्र या पत्रिका के पन्ने उलटते हैं तो विभिन्न प्रकार के विज्ञापन हमारा स्वागत करते हुए दिखाई देते हैं। विभिन्न मुद्राओं के चित्र, भावपूर्णशैली, लालसा व कौतूहल पैदा करने वाले ढंग हमारा मन मोह लेते हैं। भाग्य का निर्माण करने वाले विज्ञापन, प्रेम-ज्वर से लेकर मुकदमे और मलेरिया बुखार तक को गारंटी के साथ दूर करने का दम भरने वाले विज्ञापन जगह-जगह दिखलाई पड़ते हैं। घर से निकलते ही सड़कों पर होर्डिंग्स आपको रुकने पर विवश कर देते हैं तो घर के अंदर टी०वी० हर समय आपको कोई-न-कोई उत्पाद दिखाता रहता है। यह विज्ञापन का संसार इतना आकर्षण पैदा करता है कि संयमी व चतुर भी इससे बच नहीं पाता। विज्ञापन के विभिन्न साधन-समाचार-पत्र, रेडियो, टी०वी०, पोस्टर, सिनेमा आदि के द्वारा किसी वस्तु का विज्ञापन किया जाता है।


विज्ञापन एक व्यापार बन गया है। विज्ञापन के जरिए निम्न स्तर की वस्तुएँ भी बिक जाती हैं। विज्ञापन द्वारा व्यापार बढ़ता है। किसी वस्तु की मांग बढ़ती है। फिल्मी संसार तो पूर्णतया विज्ञापन पर ही निर्भर रहता है। विज्ञापन के सिर्फ लाभ ही हों, ऐसा नहीं है। इसके नुकसान भी हैं, विज्ञापन व्यवसाय के विश्वास को डगमगा देता है। धूर्तता के कारण वस्तु या सेवा के हानिकारक पक्षों को नहीं दिखाया जाता कंपनियाँ विक्री बढ़ाने के चक्कर में अश्लीलता की तमाम हदें पार कर जाती हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए तथा दोषियों को सजा दे। भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।

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