प्रातःकाल की सैर
प्रातः काल का वातावरण बेहद स्वास्थ्यकारी होता है। सुबह-सुबह की हवा काफी स्वच्छ होती है, तापमान भी कम रहता है तथा वातावरण का प्रदूषण भी काफी कम होता है। शुद्ध हवा से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इससे व्यक्ति का तन-मन तरोताजा हो जाता है। आलस्य दूर भाग जाता है। इसी ताजगी के बल पर मनुष्य दिन-भर अपने कार्य सहजता से कर पाता है। वह निराशा का शिकार नहीं होता तथा परिश्रम से जी नहीं चुराता। इस प्रकार स्वस्थ रहकर परिश्रम करने वाला व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहता है। प्रातः कालीन सैर करने के लिए कुछ नियमों का पाबंद होना जरूरी है। इसके लिए व्यक्ति को सूर्योदय से पहले घूमना होगा। सूर्योदय के बाद उसका विशेष लाभ नहीं रह जाता। दूसरे, सैर करने के लिए खुला व हरा-भरा वातावरण होना चाहिए। तीसरे, पैरों के साथ-साथ बाजुओं का हिलना-डुलना भी जरूरी है। गहरी साँस लेकर धीरे-धीरे छोड़नी चाहिए। यदि व्यक्ति का शरीर ठीक हो तो उसे हल्का-फुल्का व्यायाम कर लेना चाहिए। प्रातः कालीन सैर के समय अधिक बोलना ठीक नहीं माना जाता। व्यक्ति जोर से हँस सकता है। इससे आदमी के फेफड़ों व कंठ का व्यायाम हो जाता है। यदि व्यक्ति नियमित रूप प्रातः काल की सैर करे तो वह अधिक फायदा ले सकता है। सैर के समय निरर्थक चिंताओं से दूर रहना चाहिए।
प्रातः कालीन सैर के लिए उपयुक्त स्थान का होना भी जरूरी है। घूमने का स्थान खुला व साफ-सुथरा होना चाहिए। हरी घास पर नंगे पैर चलने से आँखों की रोशनी बढ़ती है तथा शरीर में ताजगी आती है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह नियम सर्दी में लागू नहीं होता। अत्यधिक ठंड से नंगे पैर चलने से व्यक्ति बीमार हो सकता है। हरित क्षेत्र में सैर करनी चाहिए। इसके लिए नदियों नहरों व खेतों के किनारे, पार्क, बाग-बगीचे आदि भी उपयोगी स्थान माने गए हैं। खुली सड़कों पर वृक्षों के नीचे घूमा जा सकता है। यदि ये सब कुछ उपलब्ध न हों, तो खुली छत पर घूमकर लाभ उठाया जा सकता है। प्रातः कालीन सैर से तन-मन प्रसन्न हो सकता । यह सस्ता व सर्वसुलभ उपाय है।
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