व्याकरण क्या है? व्याकरण के अंग, परिभाषा और महत्व


व्याकरण क्या है? व्याकरण की परिभाषा और महत्त्व बताइए

व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा हमे किसी भाषा का शुद्ध बोलना, लिखना एवं समझना आता है। भाषा की संरचना के ये नियम सीमित होते हैं और भाषा की अभिव्यक्तियाँ असीमित। एक-एक नियम असंख्य अभिव्यक्तियों को नियंत्रित करता है। भाषा के इन नियमों को एक साथ जिस शास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है उस शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।


व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा से संबंधित नियमों का ज्ञान करता है। किसी भी भाषा की संरचना का सिद्धांत अथवा नियम ही उसका व्याकरण है। यदि नियमों द्वारा भाषा को स्थिर न रखा जाए तो उसकी उपादेयता, महत्ता तथा स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा। अतः भाषा के शीघ्र परिवर्तन को रोकने के लिए ही व्याकरण का उस पर नियन्त्रण कर दिया गया है। भाषा यदि साध्य है तो व्याकरण उसका साधन है। व्याकरण भाषा का अनुशासन मात्र ही करता है, शासन नहीं। वह भाषा सृजन उसका साधन है। व्याकरण भाषा का सृजन नहीं। परिष्कार करता है।


व्याकरण की परिभाषा:-

व्याकरण की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार है: 


1. पंतजलि के अनुसार - "महाभाष्य में व्याकरण (शब्दानुशासन) कहा है।"


2. डॉ. स्वीट के अनुसार - "व्याकरण भाषा का व्यवहारिक विश्लेषण अथवा उसका शरीर विज्ञान है।"


3. जैगर के अनुसार प्रचलित भाषा संबंधी नियमों की व्याख्या ही व्याकरण है।"


व्याकरण के अंग 

व्याकरण के चार अंग होते हैं वर्ण विचार, शब्द विचार, पद विचार एवं वाक्य विचार। 


1. वर्ण विचार

इस विचार में वर्णों के उच्चारण, रूप, आकार, भेद, वर्णों को मिलाने की विधि, लिखने की विधि बताई जाती है।


2. शब्द विचार

इस विचार में शब्दों के भेद, व्युत्पत्ति, रचना, रूप, प्रयोगों, उत्पत्ति आदि का अध्ययन करवाया जाता है।


3. पद विचार

इस विचार में पद का तथा पद के भेदों का वर्णन किया जाता है।


4. वाक्य विचार

इस विचार में वाक्यों की रचना, उनके भेद, वाक्य बनाने, वाक्यों को अलग करने, विराम चिन्हों, पद परिचय, वाक्य निर्माण, गठन, प्रयोग, उनके प्रकार आदि का अध्ययन करवाया जाता है।


व्याकरण और भाषा का संबंध

कोई भी व्यक्ति व्याकरण को जाने बिना भाषा के शुद्ध रूप को नहीं सीख सकता है। इसी वजह से भाषा और व्याकरण का बहुत गहरा संबंध है। व्याकरण, भाषा को उच्चारण, प्रयोग, अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है।


मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।


साधारण शब्दों में – व्याकरण वह शास्त्र है, जिससे भाषा को शुद्ध लिखने, बोलने और पढने का ज्ञान सीखा जाता है। शुद्ध लिखने के लिए व्याकरण को जानने की बहुत जरूरत होती है। व्याकरण से भाषा को बोलना और लिखना आसान होता है। व्याकरण से हमें भाषा की शुद्धता का ज्ञान होता है। भाषा को प्रयोग करने के लिए हमें भाषा के नियमों को जानने की जरूरत है। इन्ही नियमों की जानकारी हमें व्याकरण से मिलती है।


हम कुछ अन्य बिंदुओं की सहायता से भाषा और व्याकरण के महत्त्व को समझ सकते हैँ :-


1. व्याकरण भाषा की शुद्धता का साधन है, साध्य नही ।


2. व्याकरण भाषा का अंगरक्षक तथा अनुशासक है।


3. व्याकरण वास्तव में शब्दानुशासन ही है।


4. व्याकरण भाषा के स्वरूप की सार्थक व्यवस्था करता है।


5. व्याकरण भाषा का शरीर विज्ञान है तथा व्यावहारिक विश्लेषण करता है।


6. गद्य साहित्य का आधार व्याकरण है।


7. भाषा की पूर्णता के लिए पढ़ना, लिखना, बोलना तथा सुनना चारों कौशलों की शुद्धता व्याकरण के नियमों से आती हैं।


8. भाषा की मितव्ययिता भी व्याकरण से होती है।


9. वाक्य की संरचना शुद्धता उस भाषा के व्याकरण से आती है।


10. व्याकरण से नवीन भाषा को सीखने में सरलता एवं सुगमता होती है।


11. भाषा संबंधी अशुद्धियों को समझने के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्क है।


12. भाषा संबंधी अशुद्धियाँ व्याकरण की जानकारी प्राप्त करके ही दूर जा सकती हैं।


13. व्याकरण की सहायता से वर्ण रचना, शब्द रचना तथा वाक्य रचना एवं भाषा संबंधी व्यवस्था तथा नियमों को ज्ञान प्राप्त होता है।


14. शुद्ध उच्चरण वाक्य रचना विराम चिन्हों आदि के लिए व्याकरण के ज्ञान की आवश्यकता होती हैं।


15. भाषा संबंधी ज्ञान के लिए व्याकरण की शिक्षा आवश्यक है। भाषा का सामान्य ज्ञान हो जाने पर ही व्याकरण की शिक्षा दी जानी चाहिए।


16. व्याकरण के ज्ञान के कारण शिक्षक छात्रों की भाषा संबंधी त्रुटियों पूर्ण विश्वास के साथ दूर कर सकता है।


17. व्याकरण का ज्ञान अपनी मातृभाषा में ही नहीं अन्य भाषाओं की सीखने में भी सहायता पहुॅचाता है।


18. व्याकरण का ज्ञान से बालक शुद्ध लिखना व बोलना ही नहीं सीखेगा बल्कि उसमें आलोचना की अपार शक्ति भी आ जायेगी। व्याकरण मानसिक अनुशासन बनाये रखने में काफी सहयोग प्रदान करता है।



1 comment:

  1. अति उत्तम व्याख्यान

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