'भूकंप' शब्द सुनते ही सब कुछ हिलता नज़र आता है। इसका अर्थ होता है-पृथ्वी का कंपन। पृथ्वी के गर्भ में किसी प्रकार की हलचल के कारण जब पृथ्वी का कोई भाग हिलने लगता है, कंपित होने लगता है, तो उसे भूकंप की संज्ञा दी जाती है। पृथ्वी लगभग हर समय हिलती रहती है, परंतु हम उन्हीं झटकों को भूकंप कहते हैं, जिनका हम अनुभव करते हैं। भूकंप के अनेक कारण होते हैं-पृथ्वी के अंदर की चट्टानों का हिलना, ज्वालामुखी फटना, परमाणु विस्फोट, बड़े बाँध, भूस्खलन, बम फटना आदि। प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप सर्वाधिक विनाशकारी होता है। यह प्रलय का दूसरा नाम है। यह पल भर में मानव की प्रगति व ताकत को तहस-नहस कर देता है तथा मनुष्य को यह अहसास करा देता है कि वह प्रकृति पर कभी नियंत्रण नहीं कर सकता। विज्ञान व वैज्ञानिकों का दंभ क्षण-भर में खत्म कर देता है। भूकंप के आने से ऊँची-ऊँची इमारतें धराशायी हो जाती हैं, बड़ी संख्या में लोग असमय ही काल के मुँह में समा जाते हैं। कभी-कभी पूरा शहर ही धरती के गर्भ में समा जाते हैं। इससे नदियाँ अपना मार्ग तक बदल लेती हैं। कहीं नए भू-आकार जन्म ले लेते हैं।
देश के इतिहास में सर्वाधिक विनाशकारी भूकंप 11 अक्टूबर, 1737 में बंगाल में आया था, जिसमें लगभग तीन लाख लोग काल के गाल में समा गए थे। महाराष्ट्र के लातूर व उस्मानाबाद जिले में 40 गाँव भूकंप के कहर से तबाह हो गए। 26 जनवरी, 2001 का दिन भारतीय गणतंत्र में काला दिन बन गया। इस दिन गुजरात पर भूकंप ने अपना तीसरा नेत्र खोला। क्षण मात्र में भुज, अंजार और भचाऊ क्षेत्र कब्रिस्तान में बदल गए। गुजरात का वैभव खंडहरों में परिवर्तित हो गया। हर तरफ चीख, बदहवासी थी। मनुष्य लाचार होकर विनाश का तांडव देख रहा था।
इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.9 थी तथा इसका केंद्र भुज से 20 कि०मी० उत्तर-पूर्व में था । इस त्रासदी में हज़ारों लोग मारे गए, कई हज़ार घायल हुए तथा लाखों बेघर हो गए। सारा देश स्तब्ध था। भयंकर विनाश देखकर सहायता के लिए अनेक हाथ आगे आए। स्वयंसेवी संस्थाओं ने राहत व बचाव कार्य में दिन-रात एक कर दिया। मीडिया के प्रचार से भारत सरकार की नींद खुली और समूचा विश्व सहायता के लिए आगे आया। विश्व के अनेक देशों व भारत के कोने-कोने से सहायता सामग्री का अंबार लग गया। सहायता के लिए धनराशि के साथ-साथ अन्य आवश्यक सामग्रियाँ भी पहुँचने लगीं।
भूकंप ने इन क्षेत्रों में जिंदगी को ठहरा दिया । अरबों की संपत्ति नष्ट हो गई। विकास-कार्य रुक गया। ऐसी घटनाएँ मानव के अनिश्चित भविष्य को दर्शाती हैं, एक तरफ हम विकास व तकनीक की श्रेष्ठता का दावा करते हैं, दूसरी तरफ हम भूकंप की पूर्वसूचना तक नहीं दे पाते। भूकंप को रोकना अभी तक मानव के वश से बाहर है, परंतु क्या हम ऐसी तकनीक विकसित कर पाएँगे, जिससे भूकंप के आने के पूर्व ही सूचना प्राप्त कर सकें? यदि ऐसा संभव हुआ तो निश्चय ही हम असमय होने वाली जन -हानियों को बचा पाएँगे।
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