मानवतावाद और आतंकवाद सर्वथा दो विरोधी अवधारणाएँ हैं। मानवतावाद के मूल में 'वसुधैव कुटुंबकम्' और 'विश्वबंधुत्व' की भावना है। यह संपूर्ण विश्व एक परिवार है' का संदेश देता है। इसके मूल में सह-अस्तित्व की भावना है, जबकि आतंकवाद अलगाववाद पर आधारित है। आतंकवाद में मानवीय संवेदनाओं का स्थान नहीं होता।
आज संसार अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है। पिछले कुछ दशकों से जिस समस्या ने विश्व को सबसे अधिक आक्रांत किया है, वह है विश्वव्यापी आतंकवाद। कुछ सिरफिरे महत्वकांक्षी लोगों ने इस समस्या को जन्म दिया है। आतंकवाद वह प्रवृत्ति है, जिसमें कुछ लोग स्वार्थपूर्ण और अमानवीय आकांक्षा की पूर्ति के लिए हिंसात्मक और अमानवीय साधनों का प्रयोग करते हैं। आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य है-जनसाधारण में डर और आतंक फैलाना ताकि जनता आतंकवादियों के विरुद्ध उठ न सके और वे अपनी घृणित गतिविधियाँ जारी रख सकें।
आतंकवादी अनेक प्रकार से आतंक फैलाने का प्रयास करते हैं; जैसे-राजनीतिज्ञों की हत्या, राजदूतों का अपहरण, निर्दोष लोगों को बंदी बनाना, विमानों का अपहरण, भीड़ भरे स्थानों पर बम-विस्फोट, रेल-दुर्घटनाएँ करने के लिए रेल लाइनों की फिश प्लेटें हटाना, कुएँ के पानी में विष-मिश्रण, बैंक तथा सार्वजनिक स्थानों में डकैती आदि। आज तो लिफ़ाफ़ों में एनथ्रेक्स भेजकर जैविक आतंकवाद तक फैलाए जाने का प्रयत्न किया जा रहा है।
बेरोजगारी, अशिक्षा, सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ आदि कारणों से समाज में असंतोष का जन्म होता है। किसी देश अथवा जाति का यह असंतुष्ट वर्ग देश से अलग होने, पृथक् राज्य स्थापित करने की माँग उठाता है और अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए पूरे देश तथा समाज को आतंकित करता है तथा अनेक बर्बर उपाय अपनाता है। आतंकवाद का स्वरूप या उद्देश्य कोई हो, इसका भौगोलिक क्षेत्र कितना ही सीमित या विस्तृत क्यों न हो, आज इसने हमारे जीवन को अनिश्चित और असुरक्षित बना दिया है।
सर्वविदित सत्य तो यह है कि हिंसा और आतंकवाद द्वारा किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। पारस्परिक विचार-विमर्श से ही समस्या हल हो सकती है। इसके लिए निर्दोष लोगों की हत्या तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश आदि का कोई औचित्य नहीं है। भारत के विभिन्न भागों में हो रही आतंकवादी गतिविधियों ने देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा कर दिया है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कश्मीर में देखने को मिल रहा है। कश्मीर के काफी बड़े भाग पर पाकिस्तान ने अनधिकृत रूप से कब्जा कर रखा है। शेष कश्मीर को हथियाने के लिए वह कश्मीर के भोले-भाले नवयुवकों के मन में उन्माद पैदा कर, उन्हें आतंकवाद का प्रशिक्षण दे रहा है। परिणामस्वरूप उग्रवादी संगठनों के कारण अशांति बनी हुई है। समूची कश्मीर घाटी हिंसा की आग में जल रही है। धर्मस्थलों को तबाह करना, युवक-युवतियों को गुमराह करना तथा उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना साधारण बात हो गई है, किंतु हमारा देश पूरी शक्ति से इस आतंकवाद का सामना कर रहा है।
आतंकवाद मस्तिष्क का फितूर है। इसकी चपेट में कोई भी विवेकहीन व्यक्ति आ सकता है। इसको दूर करना एक माह या एक साल का काम नहीं है। निरंतर कोशिशों से ही इसे मिटाया जा सकता है। इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता राष्ट्रीय एकता की है। समस्त व्यक्तिगत, जातिगत, धर्मगत, स्वार्थों को त्यागकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुदृढ़ बनाने में प्रत्येक व्यक्ति को रचनात्मक सहयोग देना होगा।
आज आतंकवाद की समस्या विश्वव्यापी हो गई है। सामान्यतः संसार के सभी देश इसके विरुद्ध संगठित हो रहे हैं। आतंकवाद मानव-जाति के लिए कलंक है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इसका समूल नाश किया जाए। कोई भी देश इस प्रकार के आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय न दे और न किसी प्रकार उनकी सहायता करे।
आतंकवाद की समस्या का समाधान बौद्धिक और सैनिक दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए। भारत सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों को बड़ी गंभीरता से लिया है और इसको मिटाने के लिए प्रत्येक स्तर पर प्रयत्नशील है। आज आवश्यकता है कि विकसित राष्ट्र, विकासशील और अविकसित राष्ट्रों को चतुर्मुखी उत्थान में सहयोग करें । सुख में, दुख में संपूर्ण विश्व परस्पर भौतिक साधनों, विचारों, संवेदनाओं का आदान-प्रदान इस प्रकार करे कि सर्वत्र प्रगति, सुख और शांति हो और भाईचारे की भावना बढ़े।
विश्व की सभी सरकारों को अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध परस्पर सहयोग करना चाहिए, ताकि कोई भी गुट कहीं शरण या प्रशिक्षण न पा सके। आतंकवाद के समाप्त होने पर ही मानवता का स्वप्न पूरा हो सकेगा।
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