दूरदर्शन : विकास या विनाश


विज्ञान की अद्भुत खोज 'दूरदर्शन' ने मानव-जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया है । इसके आविष्कारक जे०एल० बेयर्ड ने भी इसकी इतनी सफलता की कल्पना न की होगी। वर्तमान में यह हर घर का अंग बन चुका है। शहरों के संपन्न घरों में जितने कमरे होते हैं, उतने टी०वी० सेट होते हैं। अब तो उच्च, मध्यम और निम्न वर्ग की बात छोड़िए, मज़दूर वर्ग भी इसके बिना नहीं रह पाता। दूरदर्शन ज्ञान एवं मनोरंजन का साधन है। इस पर हर आयु-वर्ग के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। लोग अपनी-अपनी पसंद के अनुरूप इस पर कार्यक्रम देखकर अपना मनोरंजन करते हैं । घर के बड़े-बुजुर्ग फ़िल्म देखते हैं तथा अपनी पसंद का धारावाहिक देखने के अलावा समाचार सुनकर देश-दुनिया की खबरों से अवगत होते हैं। घर की स्त्रियाँ समाचार कम देखती हैं। वे तो सास-बहू के झगड़ों से जुड़े धारावाहिक तथा अन्य कार्यक्रम देखकर मनोरंजन करती हैं। बच्चे दूरदर्शन से दो प्रकार से लाभान्वित हाते हैं-एक तो वे फ़िल्मों, धारावाहिकों के अलावा अपनी पसंद के कार्टून देखते हैं, दूरदर्शन पर प्रसारित विभिन्न खेलों का आनंद उठाते हैं। दूसरे, बच्चों के लिए एन०सी०ई०आर०टी० के पाठ्यक्रमों से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, जो ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ मनोरंजक भी होता है। युवा-वर्ग दूरदर्शन के कार्यक्रमों को इतनी रुचि से देखता है कि उसकी पढ़ाई पर इसका बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। दूरदर्शन पर प्रसारित खेलों में युवाओं से अधिक रुचि शायद ही कोई लेता हो। यह दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों और उनकी लोकप्रियता का असर था कि जिस समय रामानंद सागर द्वारा निर्देशित 'रामायण' धारावाहिक का प्रसारण शुरू होता था, लोग उससे पहले ही हाथ-पैर धोकर, दूरदर्शन के सामने बैठ जाते थे। उस समय दुकानों, सड़कों पर वीरानी छा जाती थी। घर के काम उस कार्यक्रम के बाद या पहले निपटाए जाते थे ग्रामीण क्षेत्रं में लोगों ने तो उस कार्यक्रम के समय दूरदर्शन को धूप-दीप दिखाकर पूजन भी शुरू कर दिया था। ऐसी है-दूरदर्शन की लोकप्रियता। इस कार्यक्रम से मानवीय मूल्य भी खूब फले-फूले।


दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखकर बच्चों को बातचीत करने, उठने-बैठने आदि के तरीके सीखने का स्वयमेव अवसर मिल जाता है। इससे सामाजिक ताना-बाना मज़बूत होता है। दूरदर्शन पर प्रसारित विज्ञापन हमें अनेक उपयोगी वस्तुओं की जानकारी देते हैं और चयन के लिए विकल्प उपलब्ध कराते हैं। इनका सामाजिक जीवन पर गहरा असर पड़ता है। दूरदर्शन का एक विशेष लाभ यह है कि यह हमें एकाकीपन की नीरसता से बचाए रखता है, जिससे हम स्वयं को स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त महसूस करते हैं। दूरदर्शन का दुष्प्रभाव भी हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन पर पड़ा है। पहले घर के सदस्य जो इकट्ठे होकर परस्पर दुख-सुख की बातें करते हुए समय बिताते थे, एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे, एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे, वह दूरदर्शन के कारण समाप्त-सा हो रहा है। अब घर के सदस्य अपनी-अपनी पसंद का कार्यक्रम देखने के लिए लालायित रहते हैं। वे एक-दूसरे से बातें कम करते हैं । दूरदर्शन के कारण विद्यार्थी पढ़ाई से विमुख होते जा रहे हैं। वे अतिथि-परंपरा के निर्वाह का दिखावा भी उस समय करते हैं, जब कार्यक्रम के बीच विज्ञापन आ रहा हो। यदि कार्यक्रम के समय कोई अतिथि आ जाए तो उसका आदर-सत्कार तो दूर मेज़बान उसके आने को अपने लिए बाधक समझता है। ऐसे में मेहमान उपेक्षित होकर रह जाता है। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में अश्लीलता, फूहड़पन, हिंसा आदि आम बात होती जा रही है। इन कार्यक्रमों में हिंसा, बलात्कार और सेक्स के दृश्यों की अधिकता के कारण परिवार के लोग एक साथ इन कार्यक्रमों को नहीं देख सकते। इसका सभी के मनोमस्तिष्क पर बुरा असर देखने को मिल रहा है। जी टी०वी० और स्टार टी०वी० ने मानो इस मामले में अन्य चैनलों को पीछे छोड़ने की प्रतिज्ञा कर रखी हो।


भारतीय संस्कृति का सत्यानाश करने का ठेका कई चैनलों ने ले रखा है। इनमें फ़ैशन के नाम पर मॉडलों को अर्धनग्न रूप में प्रदर्शित किया जाता है। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' वाले देश में अब नारी को इन कार्यक्रमों में मात्र भोग की वस्तु मानकर प्रस्तुत किया जाता है। कार्यक्रमों में कहानी की माँग बताकर विवाहेतर संबंधों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, जिसका किशोरों के मन पर बुरा असर पड़ रहा है। इस प्रकार दूरदर्शन पर परोसी जा रही सामग्री समाज को विनाश की और ले जा रही है। त्याग, ममता, दया, प्रेम की प्रतीक नारी को खलनायिका के रूप में प्रस्तुत करके उसकी सहजता और कोमलता नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब नारी की परंपरागत छवि और भारतीय संस्कृति के लिए घातक है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों का चयन करना हमारे हाथ में है, फिर भी दूरदर्शन के इस विनाशकारी रूप को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

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