बाल-मज़दूरी : समस्या एवं समाधान


स्वतंत्र भारत में अनेक ऐसी समस्याएँ हैं, जो सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति में बाधक बनी हुई हैं। बेरोज़गारी, जनसंख्या-वृद्धि, महँगाई कुछ ऐसी ही समस्याएँ हैं। इनके अलावा एक और भी ऐसी समस्या है, जिसकी ओर हमारा ध्यान कम ही जाता है। वह है-'बाल-मज़दूरी'। यह समस्या हमारे समाज और देश के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। समाज के कुछ स्वार्थी लोग अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए बच्चों से काम करवाते हैं तथा उन्हें बहुत कम वेतन देते हैं। फ़ैक्टरियों, उद्योग-धंधों और अन्य कार्य-स्थलों पर बच्चों का काम करना 'बाल-मज़दूरी' कहलाता है।


हम प्रायः देखते हैं कि धनी वर्ग की कोठियों, ढाबों, चाय की दुकानों, मोमबत्तियाँ, अगरबत्तियाँ, चूड़ियाँ आदि बनाने की फ़ैक्टरियों में बच्चों से काम करवाया जाता है। उन्हें कम वेतन देकर उनका शोषण किया जाता है। इसके अलावा, उनसे अमानवीय दशाओं में काम कराया जाता है। इससे उनके अधिकारों का हनन होता है। एक ओर इन बच्चों से श्रम-साध्य कार्य कराया जाता है तो दूसरी ओर उन्हें नाममात्र की मजदूरी दी जाती है। इन बच्चों से गालियाँ देकर बात करना, बात-बात में उनकी पिटाई करना आम बात है। इनमें कई कार्य ऐसे होते हैं, जिनमें तनिक-सी लापरवाही से उनकी जान तक चली जाती हैं। हम प्रायः आतिशबाजी की फ़ैक्टरियों में विस्फोट होने, आग लगने से बाल-मज़दूरों की मृत्यु का समाचार सुनते रहते हैं। बाल-मज़दूरी हमारे समाज के लिए कलंक से कम नहीं है। इससे बच्चों का बचपन नष्ट हो जाता है। वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। पढ़ाई-लिखाई की बातें उनके लिए सपना बनकर रह जाती हैं । खेल के मैदान, खेल-खिलौने हरे-भरे पार्क, मैदान, बाग-बगीचे, रंगीन पुस्तकें, विद्यालय किसी दूसरी दुनिया की चीजें बनकर रह जाते हैं। उनका बचपन लोहे की मशीनों में पिसकर रह जाता है। जब पढ़ने-लिखने की उम्र में वे काम करेंगे तो निश्चित रूप से वे निरक्षर, अकुशल मजदूर बनकर रह जाएँगे। समाज के कुछ स्वार्थी लोग तो यही चाहते हैं कि वे इन भोले-भाले अनपढ़ मज़दूरों का शोषण करते रहें। इस प्रकार ये बाल-मजदूर समाज की उन्नति में अपना वह योगदान नहीं दे पाते, जो उन्हें पढ़-लिखकर योग्य व्यक्ति बनकर देना चाहिए था। हमारे समाज के लोग इन बाल-मज़दूरों को देखकर भी अनदेखा कर जाते हैं और फ़ैक्टरी मालिक इनसे काम करवाते रहते हैं। ये लोग इन बाल-मजदूरों से काम क्यों करवाते हैं? इसका सीधी-सा जवाब यह है कि उन्हें इन बाल-मज़दूरों को एक तो कम मजदूरी देनी पड़ती है, दूसरे उन पर पारिवारिक जिम्मेदारी न होने के कारण वे छुट्टी नहीं करते तथा अधिक समय तक काम करते हैं। इन बाल-मजदूरों का कोई संगठन नहीं होता, इसलिए वे शोषण और मार-पीट का विरोध नहीं कर पाते। अब प्रश्न यह उठता है कि ये वाल-मजदूर काम क्यों करते हैं? इसका सीधा-सा जवाब है-गरीबी। इनके माता-पिता की आय इतनी कम होती है कि इन बच्चों को विवशता में काम करना पड़ता है। इसके अलावा पिता के काम करने में अक्षम होने या मृत्यु होने पर परिवार का खर्च चलाना इनकी मज़बूरी बन जाता है। इसके अलावा कुछ माता-पिता बच्चों को कमाई का साधन समझ बैठते हैं। वे उन्हें पढ़ाने-लिखाने की बजाय काम पर लगा देते हैं। यदि बच्चे काम पर नहीं जाना चाहते तो ये अनपढ़, स्वार्थी माता-पिता मार-पीटकर बच्चों को काम पर भेजते हैं। ये अपने स्वार्थ के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं। इन्हें पता नहीं होता कि शिक्षा का क्या महत्व है। ऐसे में वे बच्चों को विद्यालय न भेजकर काम पर भेजते हैं। बाल-मज़दूरी के कारण एक ओर बच्चों का भविष्य नष्ट होता है, तो दूसरी ओर यदि इन बाल-मजदूरों को हटा दिया जाए तो इनकी जगह हज़ारों को रोजगार मिल जाएगा। इससे बेरोजगारी में कुछ कमी आएगी, परंतु बाल-मजदूरी को समाप्त करा पाना इतना आसान नहीं है। जिन लोगों को बाल-मज़दूरी के निवारण का काम सौंपा जाता है, खुद उनके अपने उद्योगों और कारखानों में कई बाल-मजदूर काम करते हैं । यदि वे इन्हें हटाएँगे तो जो मजदूर रखे जाएँगे, उन्हें पूरा वेतन देना होगा, जिसका पूरा असर उनके मुनाफे पर पड़ेगा, जिसे वे आसानी से नहीं करना चाहेँगे |


बाल-मज़दूरी के कारण शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। इससे प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य अधूरा रह जाता है। यदि बच्चे फैक्टरियों में काम नहीं करेंगे और स्कूल जाएँगे तो पढ़-लिखकर वे सुयोग्य नागरिक बनकर समाज और देश की प्रगति में अपना योगदान दे सकेंगे।


'बाल-मज़दूरी' समाज पर काला धब्बा है। इस धब्बे को मिटाने के लिए बच्चों को उनका मौलिक अधिकार देकर उनसे मज़दूरी बंद करानी होगी तथा बाल-मज़दूरी कराने वालों को दंडित कराना होगा, जिससे इस अभिशाप से मुक्ति मिल सके।

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