आधुनिक फैशन


एक फ्रांसीसी विचारक का कहना है-आदमी स्वतंत्र पैदा होता है, लेकिन पैदा होते ही तरह-तरह की जंजीरों में जकड़ जाता है। वह परंपराओं, रीति-रिवाजों, शिष्टाचारों, औपचारिकताओं का गुलाम हो जाता है। इसी क्रम में वह फ़ैशन से भी प्रभावित होता है। समय के साथ समाज की व्यवस्था में बदलाव आते रहते हैं। इन्हीं बदलावों के तहत रहन-सहन में भी परिवर्तन होता है। किसी भी समाज में फैशन वहाँ की जलवायु, परिवेश तथा विकास की अवस्था पर निर्भर करता है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ वहाँ के निवासियों के जीवन-स्तर में परिवर्तन आता-जाता है।


20वीं सदी के अंतिम दौर से फ़ैशन ने उन्माद का रूप ले लिया। यह फ़ैशन हर क्षेत्र में छा गया, चाहे वह संगीत हो, कपड़ों से संबंधित हो या अन्य किसी विषय से। हर आधुनिक वस्तु फ़ैशन बन गई है। फ़ैशन को ही आधुनिकता का पर्याय मान लिया गया इस फ़ैशन की अधिकांश बातें आम जीवन से दूर होती हैं। फ़ैशन से संबंधित अनेक कार्यक्रमों का रसास्वादन अधिकांश लोग नहीं ले सकते, परंतु आधुनिकता और फ़ैशन की परंपरा का निर्वाह करते हैं।


फ़ैशन का सर्वाधिक असर कपड़ों पर होता है। समाज का हर वर्ग इससे प्रभावित होता है। आमतौर पर यह धारणा है कि महिलाएँ व लड़कियाँ ही इससे अधिक प्रभावित रहती हैं, परंतु आज पुरुष भी इसमें पीछे नहीं हैं। कभी चुस्त कपड़ों का फ़ैशन आता है तो कभी ढीले-ढाले वस्त्रों का तो कभी कतरनों को फ़ैशन का नाम दिया जाता है। टी०वी० चैनलों व फ़िल्मों ने इस प्रक्रिया को अधिक गति दी है। हिट फ़िल्म के हीरो-हीरोइनों की वेशभूषा, साज-सज्जा का अनुकरण करने की कोशिश की जाती है। आमिर खान की तरह हेयर स्टाइल को फ़ैशन के नाम पर लड़के अपनाने लगे हैं। शाहरूख खान के तुतलाने के स्टाइल को अपनाना अपनी शान समझते हैं। लड़कियाँ भी आधुनिक अभिनेत्रियों की नकल उतारती हैं। कई 'बेबो' की तरह जीरो फिगर पाना चाहती हैं तो कई ऐश्वर्य राय की ड्रेसों की नकल करती हैं।


अच्छे कपड़ों के द्वारा अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाना अच्छी बात है, लेकिन जिस प्रकार से अंधानुकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वह उचित नहीं है। फैशन के नाम पर सामाजिक मर्यादा को तोड़ देना गलत है। कोई भी वस्त्र इसलिए पहनना कि उसका फ़ैशन हैं, भले ही वह शरीर के लिए उपयुक्त है या नहीं, हास्यास्पद लगता है। वस्त्र का कार्य शरीर को ढकना है, उसका प्रदर्शन करना नहीं है। आधुनिक फ़ैशन शरीर को नुमाइश की वस्तु बनाता है। वह शरीर को स्वाभाविक रूप से सुंदर नहीं बनाता।


आधुनिकता और फ़ैशन वर्तमान समाज में अब स्वीकार्य तथ्य हैं। फ़ैशन के अनुसार अपने में परिवर्तन करना भी स्वाभाविक प्रवृत्ति है, लेकिन इसके अनुकरण से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इससे व्यक्तित्व में वृद्धि होती है या नहीं। सिर्फ फैशन के प्रति दीवाना होना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं।



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