कमरतोड़ महँगाई


आज सारा विश्व महँगाई के दैत्य से पीड़ित है परंतु भारत में इसकी वजह से विशेष रूप से चिंताजनक स्थिति है। आज दैनिक जीवनोपयोगी वस्तुएँ आम आदमी की पहुँच से बाहर हो रही हैं। पेट्रोल, डीजल आदि की मूल्यवृद्धि से महँगाई और भडकती जा रही है। सब्जी, दाल, फल आदि की आसमान छूती महँगाई पुकार-पुकार कर कहती है :-

रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी।

मकानों के किराए बेतहाशा बढ़ रहे हैं। कम आय के व्यक्ति के लिए महानगर में रहना बेहद कठिन होता जा रहा है। महँगाई से उत्पादक वर्ग अधिक पीड़ित नहीं होता। इसका कारण यह है कि वह अपने उत्पाद की कीमत बढ़ा देता है। सरकारी कर्मचारी भी महँगाई की मार से बच जाता है, क्योंकि उनका महँगाई भत्ता बढ़ जाता है। इससे सर्वाधिक प्रभावित गैर-सरकारी कर्मचारी या श्रमिक वर्ग होता है। इस वर्ग का उत्पादन या सेवा प्रक्रिया में प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती। इनकी आय के स्रोत लगभग सीमित होते हैं। इनका वेतन महँगाई के अनुरूप नहीं बढ़ता।


महँगाई बढ़ने के विभिन्न कारण हैं। उनमें से प्रमुख कारण है-देश की तेजी से बढ़ रही आबादी और इसके मुकाबले संशाधनों का विकास धीमी गति से होना । फलस्वरूप आपूर्ति कम और माँग अधिक होने से महँगाई बढ़ी है। हालाँकि प्राकृतिक कारण भी अकसर महँगाई के जिम्मेदार बन जाते हैं। जैसे वर्षा, गरमी, सर्दी आदि के मौसमी चक्र के बदलाव से फसल उत्पादन में भारी कमी आई है। इस कारण खाद्य वस्तुओं के दाम आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गए हैं। सरकारी तंत्र भी इसमें दोषी है। सरकारी अफसर और जमाखोरों की मिलीभगत, किसी विशेष वस्तु का कृत्रिम अभाव पैदा कर देती है। पैसा देकर भी वह वस्तु नहीं मिलती। ऐसे में यह कहना उचित होगा कि काला धन, तस्करी और जमाखोरी महँगाई-वृद्धि के परम मित्र हैं। इन तीनों का संबंध सरकार से होता है। लाइसेंस लेना हो, फाइल निकलवानी हो या कोई अन्य कार्य हो, हर काम में दक्षिणा देनी पड़ती है। सरकार की इच्छा-शक्ति कमजोर है। इस देश में सार्वजनिक क्षेत्र स्थापित करने का उद्देश्य जनता के लिए उचित दरों पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना तथा संरचनात्मक विकास करना था, परंतु अयोग्य कर्मचारियों, राजनीतिक हस्तक्षेप व भ्रष्टाचार के कारण, ये लाभ के बजाए हानि उत्पन्न कर रहे हैं। मुनाफाखोरी भी महँगाई का प्रमुख कारण है। उत्पादक अपने उत्पादों पर अपनी मर्जी का विक्रय मूल्य लिखते हैं, परंतु वे उत्पादन लागत नहीं लिखते। अत्यधिक मुनाफे की प्रवृत्ति भी महँगाई को बढ़ा रही है।


सरकारी नीति, टैक्स दर, विकास के नाम पर लूट आदि कारक भी महँगाई बढ़ाते हैं। आवासीय परिसर बनाने के कारण जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। घर बनाने का सपना सपना ही रह गया है। सरकारी खर्च में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। अत: विकास योजनाएँ पर्याप्त धन के अभाव में समय पर पूरी नहीं हो पातीं। विकसित देशों की श्रेणी में खड़े होने के लिए हम चाँद पर बस्ती बनाने की बात कर रहे हैं, परंतु आम जनता को आधारभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हैं। विकास के नाम पर अरबों रुपये की परियोजनाएँ व्यर्थ में पूरी की जा रही हैं।


महँगाई की इस बाढ़ को रोकने के लिए अनेक उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले आवश्यक वस्तुओं के वर्तमान दरों और मूल्यों को यदि कम करना संभव न हो सके तो उन्हें स्थिर रखना आवश्यक है। देश की आवश्यकताओं का सही और तथ्यात्मक अनुमान लगाकर दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना होगा। विकास-योजनाएँ बनाते समय उनकी आम जनता के लिए उपयोगिता को ध्यान में रखना होगा। शासन-प्रशासन योजना-गैर योजना के स्तरों पर जो भ्रष्टाचार पनप रहा है, उसे समाप्त करने की ओर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। कर्मचारियों की कार्यनिष्पादन-क्षमता में वृद्धि करना ज़रूरी है। जनसंख्या की निर्बाध वृद्धि को नियंत्रित करना आवश्यक ही नहीं, बल्कि प्राथमिक आवश्यकता है। इन सब कार्यों के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा। शासक व विरोधी-सभी को एकजुट होकर महँगाई के जिन्न के खिलाफ़ संघर्ष करना होगा।

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