मनुष्य श्रमशील प्राणी है। वह अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए श्रम करता है। इससे वह थकान अनुभव करता है। इस धकान से छुटकारा पाने के लिए वह तरह-तरह के उपाय अपनाता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह जाने-अनजाने में धूम्रपान का भी सहारा लेता है. जो उसका गलत फैसला होता है, क्योंकि इससे उसे अपनी थकान में भले ही क्षणिक लाभ मिलता हो, पर उसका दुष्प्रभाव दीर्घकालिक होता है। धूम्रपान के अंतर्गत मनुष्य बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू आदि का उपयोग करता है, जो अंततः जानलेवा सिद्ध होता है।
धूम्रपान के कारण मनुष्य को दोहरी हानि होती है। एक ओर उसे अपनी गाढ़ी कमाई लुटानी पड़ती है तो दूसरी ओर अपना अमूल्य स्वास्थ्य। धन की क्षति को वह समय के साथ-साथ पूरा कर लेता है, पर स्वास्थ्य की क्षति अपूरणीय होती है। धूम्रपान से व्यक्ति के फेफड़ों पर धुएँ की काली परत जमा हो जाती है। इसमें मुँह के रोग, यहाँ तक कि कैंसर तक हो जाता है। यह श्वास-संबंधी रोगों के लिए पूर्णतया उत्तरदायी होता है। धूम्रपान के आदी लोग खाँसी तथा अन्य बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। यह वह व्यसन है, जिसके चंगुल में एक बार फँस जाने पर उससे मुक्त होना कठिन होता है। यद्यपि संकल्प के धनी लोगों के लिए यह कठिन ज़रूर है, पर असंभव नहीं।
सरकारी प्रयास के कारण आजकल सिगरेट की डिब्बियों पर चेतावनी लिखी होती है तबाकू के पैकेटों पर इसके दुष्परिणाम को दर्शाता चित्र बना होता है तथा समाचार-पत्र, सिनेमा एवं विभिन्न संचार माध्यमों से इसका दुष्परिणाम प्रसारित करके लोगों से अपील की जाती है कि वे इसका सेवन न करें। सरकार इतनी जागरूकता उत्पन्न करती है. परंतु इसके आदी लोगों पर इन सबका कोई असर नहीं होता। वे इसे साधारण बात समझकर अनदेखा और अनसुना कर जाते हैं। यहाँ तक कि सरकार ने थोड़ा कठोर कदम उठाते हुए सार्वजनिक स्थलों पर इसके सेवन पर पाबंदी लगा दी है तथा ऐसा करने वालों पर आर्थिक जुर्माना लगाने का प्रावधान कर रखा है, पर धूम्रपान करने वाले इससे बेखबर हैं और इसे पालन करवाने का उत्तरदायित्व जिन पर है, वे भी आँखें मूँदें रहते हैं। दुख तो तब होता है, जब इस जिम्मेदारी का निर्वाह करने वाले ही सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करते देखे जाते हैं, पर इन्हें आखिर कौन रोके। ऐसे में धूम्रपान एक लाइलाज समस्या बनता जा रहा है।
धूम्रपान न करने वाले लोग इसके खिलाफ होते हैं। मैं भी चाहता हूँ कि लोग धूम्रपान करने की आदत छोड़े। इसका कारण यह है कि धूम्रपान करने से उन्हें क्या मिलता है, क्या नहीं, मुझे पता नहीं पर उनके द्वारा छोड़े गए जहरीले धुएँ का शिकार मुझ जैसे लोग अवश्य होते हैं। न चाहकर भी साँसों के माध्यम से इस धुएँ को अंदर करना पड़ता है। ऐसे में धूम्रपान निषेध सभी के हित में है। सरकार द्वारा इसके खिलाफ़ कुछ कदम उठाए गए हैं, पर जब तक जन-साधारण इससे होने वाली हानियों के प्रति स्वयं जागरूक नहीं होगा, तब तक सरकारी प्रयास नाकाफी होंगे वास्तव में इसे रोकने के ठोस कदम के साथ सख्त कदम उठाने की भी आवश्यकता है।
धूम्रपान रोकने के लिए सरकार को चाहिए कि वह 'न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी' के सिद्धांत को अपनाकर कार्य करे। इसे समूल नष्ट करने के लिए इसके मुख्य स्त्रोत तंबाकू के उत्पादन पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। जब तंबाकू ही न होगी तो इससे बनने वाले उत्पाद कैसे लोगों तक पहुँचेंगे, पर सरकार शायद ही ऐसा कदम उठाए, क्योंकि उसे इसकी बिक्री से मिलने वाला राजस्व उसकी आय का सशक्त स्रोत है। शायद कुछ लोग इसके कारोबार में लगे लोगों के बेरोज़गार होने का रोना रोएँ, पर यदि सरकार में दृढ़ इच्छा-शक्ति हो तो इसका समाधान हो सकता है।
धूम्रपान हर तरह से हानिप्रद है, अत: इसके विरुद्ध चेतना फैलाने की आवश्यकता है। सरकार को इसे उच्च जीवन-शैली एवं शानदार जिंदगी का प्रमाण बताने वाले विज्ञापनों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। फ़िल्मों में से ऐसे दृश्यों को हटा देना चाहिए तथा इसके विरुद्ध वातावरण बनाने की कोशिश करनी चाहिए। जब लोगों को इसकी हानियों का बार-बार ज्ञान कराया जाएगा तो वे इससे ज़रूर ही विमुख होंगे।
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