परिश्रम ही सफलता की कुंजी है


संस्कृत में कहा गया है-'उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि न मनोरथैः।' अर्थात् परिश्रम से ही सारे कार्य सफल होते हैं, केवल मन में इच्छा करने मात्र से नहीं। सफलता पाने लिए मनुष्य को परिश्रम करना बहुत आवश्यक है। जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं, वे एक-न-एक दिन जीवन में सफलता अवश्य अर्जित करते हैं। मनुष्य ने परिश्रम के बल पर इस धरती को स्वर्ग समान सुंदर बनाया है। विश्व में गगनचुंबी इमारतें, नदियों पर बने बड़े-बड़े पुल, सुंदर नगर, कल-कारखाने, मोटर गाड़ियाँ, रेल, वायुयान, सागर के सीने पर दौड़ते जलपान मानव के परिश्रम के ही परिणाम है, जो उसके परिश्रमी स्वभाव का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

आदिकाल रहा हो, मध्यकाल रहा हो या आधुनिक काल, परिश्रम की महत्ता हर काल में रही है। आदमी की जीवन-शैली और रहन-सहन का बंग भले ही बदला हो, पर परिश्रम की प्रासंगिकता कम होने की बजाय उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई। परिश्रम वह कुंजी है, जिससे सफलता का हर द्वार खोला जा सकता है। परिश्रम से जी चुराने वाला व्यक्ति मनवाही सफलता नहीं पा सकता। परिश्रम के बिना सफलता की चाह रखना दिवास्वप्न देखने जैसा है। परिश्रम तन-मन से किया गया. वह शारीरिक प्रयास है जो हमारा मनोरथ पूरा करते हुए हमें लक्ष्य तक पहुँचाता है।

प्रकृति के संपूर्ण कार्य उसके परिश्रम के अनुपम उदाहरण हैं। सुरज, चाँद, तारे अपने समय पर अपनी चमक बिखेरने उपस्थित हो जाते हैं। यदि सूरज आलस्य में डूबकर कुछ दिन घर बैठा रह जाए तो धरती के प्राणियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। बादल पानी न लाएँ तो क्या होगा? इसकी कल्पना से ही मन काप उठता है। पवन बहना बंद कर दे, नदियाँ एक जगह थम जाएँ तो प्रलय जैसी स्थिति आ जाएगी। इसी प्रकार मधुमक्खियाँ और चीटियाँ अपने परिश्रम के लिए ही जानी-पहचानी जाती हैं। ये अपनी क्षमता से कई गुना परिश्रम करती हैं। पक्षी अपने भोजन और पानी के लिए अथक परिश्रम करते हैं। मनुष्य को चाहिए कि प्रकृति के इन तत्वों की परिश्रमशीलता देखकर अपना आलस्य त्याग दे और परिश्रम में जुट जाए। परिश्रम अच्छा स्वास्थ्य पाने का सर्वोत्तम और सबसे सस्ता साधन है यह जीवन में चैतन्यता लाता है। किसानों मजदूरों के स्वस्थ और सुइढ़ शरीर का रहस्य परिश्रम ही है। परिश्रम में वह शक्ति है जो निर्बल को सबल तथा राजा को रंक बना सकती है। परिश्रम करने से असाध्य कार्य साध्य और असंभव संभव बन जाता है। व्यक्ति जब परिश्रम के बल पर आर्थिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत क्षेत्र में सफलता पाता है तो उसके यश में वृद्धि होती है। वह प्रतिष्ठा और आदर का पात्र बन जाता है। वह दूसरे लोगों के लिए आदर्श बन जाता है।

परिश्रम से व्यक्ति अपनी उन्नति करता है, जिससे समाज एवं राष्ट्र उन्नति की ओर बढ़ते हैं। जिस किसी भी देश एवं समाज ने उन्नति किया है, उसमें उसके परिश्रमी नागरिकों का सर्वाधिक योगदान रहा है। जापान की मिसाल हमारे सामने है, अमेरिका द्वारा तहस-नहस करने के बाद भी वहाँ के नागरिक अपने परिश्रम और बाहुबल से अन्य देशों से अधिक उन्नति कर उन्हें कुछ सोचने पर विवश कर दिए। जापान के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन के उन्नत होने का रहस्य उनके नागरिकों का परिश्रमी होना है जिन देशों के नागरिकों ने परिश्रम का दामन छोड़कर आलस्य का दामन थामा वे लोग, उनका समाज तथा उनका राष्ट्र पतन के गर्त में पहुँच गया।

विश्व में सफलता का शिखर छूने वाले लोगों का स्वभाव परिश्रमी रहा है। उनकी सफलता का मूलमंत्र परिश्रम ही रहा विश्व के धनवान, महत्वाकांक्षी और यशस्वी सम्राटों ने परिश्रम के बल पर ही युद्धों को जीता, अपने साम्राज्य का विस्तार किया और लोगों के दिलों पर भी राज किया। सिकंदर ने विश्व-विजय का सपना अपने परिश्रम के बल पर हो देखा था। मौर्य वंश का प्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, जो शुरू में अत्यंत साधारण व्यक्ति था, ने अपने परिश्रम के बल पर हो मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। राष्ट्रपति महात्मा गांधी, टैगोर, तिलक, जवाहरलाल नेहरू, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, प्रेमचंद, एडिसन, अब्राहम लिंकन, कार्ल मार्क्स आदि परिश्रम के कारण प्रसिद्धि पा सके। हमें भी इन महापुरुषों से सीख लेकर परिश्रमी बनना चाहिए तथा 'परिश्रम सफलता की कुंजी है' को चरितार्थ करना चाहिए।

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