युवा असंतोष


आज चारों तरफ असंतोष का माहौल है। बच्चे-बूढ़े, युवक-प्रौढ़, स्त्री-पुरुष, नेता-जनता सभी असंतुष्ट हैं। घर-बाहर सभी जगह सबको किसी-न-किसी को कोसते हुए देखा-सुना जा सकता है। अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसका एक ही कारण नजर आता है कि हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में असंतुष्टि की तलवार अपने सिर पर लटका पाता है। स्वाधीनता से पहले पराधीनता असंतोष का कारण थी। इसे पाने के बाद सुख-सुविधाओं की कमी से असंतोष उत्पन्न हुआ। नेताओं के आश्वासन खोखले व निरर्थक साबित हुए। योजना-पर-योजना बनी, परंतु परिणाम विशेष उत्साह वाला नहीं रहा। निराशा, असंतुष्टि का वातावरण सबके मन मस्तिष्क पर छा गया। इसी असंतुष्टि से पीड़ित युवा वर्ग भी है।


युवा वर्ग को शिक्षा ग्रहण करते समय बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए जाते हैं। वह मेहनत से डिग्रियाँ हासिल करता है, परंतु जब व्यवहारिक जीवन में प्रवेश करता है तो खुद को पराजित पाता है। उसे अपनी डिग्रियों की निरर्थकता का अहसास हो जाता है। इनके बल पर रोज़गार नहीं मिलता। इसके अलावा, हर क्षेत्र में शिक्षितों की भीड़ दिखाई देती है। वह यह भी देखता है कि जो सिफारिशी है, वह योग्यता न होने पर भी मौज कर रहा है। वह, सब प्राप्त कर रहा है, जिसका वह वास्तविक अधिकारी नहीं है। युवा दाखिले में असंतोष होता है। उसे अपनी मर्जी का विषय नहीं मिल पाता। अत: वह इच्छानुसार परीक्षा परिणाम नहीं ला पाता।


उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों की इच्छाएँ भड़का दी जाती हैं। राजनीति से संबंधित लोग तरह-तरह के प्रलोभन देकर उन्हें भडका देते हैं। राजनीतिज्ञ युवाओं का इस्तेमाल करते हैं। वे उन्हें चुनाव लड़वाते हैं। कुछ वास्तविक और कुछ नकली माँगों, सुविधाओं के नाम पर हड़ताल करवाई जाती है। इन सबका परिणाम शून्य निकलता है। युवा लक्ष्य से भटक जाते हैं। बेकारों की अथाह भीड को निराशा और असंतोष के सिवाय क्या मिल सकता है?


समाज युवाओं को 'कल का भविष्य' कहता है। उन्हें उन्नति का मल कारण माना जाता है, परंतु सरकारी व गैर-सरकारी क्षेत्र में उन्हें मात्र बरगलाया जाता है। उनकी वास्तविक जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। उन्हें महज सपने दिखाए जाते हैं। पढ़ाई-लिखाई, शिक्षा, सभ्यता संस्कृति, राजनीति और सामाजिकता हर क्षेत्र में उन्हें बड़े-बड़े सपने दिखाए जाते हैं, परंतु ये सपने हकीकत से बेहद दूर होते हैं। जब सपने पूरे न हों, तो असंतोष का जन्म होना स्वाभाविक है। भ्रष्टाचार के द्वारा जिन युवाओं के सपने पूरे किए जाते हैं, ऐसे लोग आगे भी अनैतिक कार्यों में लिप्त पाए जाते हैं। उनकी शान-शौकत भरी बनावटी ज़िंदगी आम युवा में हीनता का भाव जगाकर उन्हें असंतुष्ट बना देती है। युवा पीढ़ी अपने बड़ों की जिंदगी को देखकर ही आगे बढ़ती है। जब असंतोष, अतृप्ति, लूट-खसोट, आपाधापी-आज के व्यावहारिक जीवन के स्थायी अंग बन चुके हैं, तो युवा से संतुष्टि की उम्मीद कैसे की जा सकती है? समाज के मूल्य भरभराकर गिर रहे हैं, अनैतिकता सम्मान पा रही है, तो युवा मूल्यों पर आधारित जीवन जीकर आगे नहीं बढ़ सकते।

No comments:

Post a Comment

Thank you! Your comment will prove very useful for us because we shall get to know what you have learned and what you want to learn?