भिक्षावृत्ति : एक अभिशाप


भारतीय संस्कृति में दान-पुण्य को जीवनमुक्ति का अनिवार्य अंग माना गया है। जब दान देने को धार्मिक कृत्य मान लिया गया तो निश्चित तौर पर दान लेने वाले भी होंगे। हमारे समाज में भिक्षावृत्ति समाज के धर्मात्मा, दयालु व सज्जन लोगों की देन है। भारतीय समाज में दान लेना व देना-दोनों धर्म के अंग माने गए हैं। कुछ भिखारी खानदानी होते हैं, क्योंकि पुश्तों से उनके पूर्वज धर्मस्थानों पर अपना अड्डा जमाए हुए हैं। कुछ भिखारी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं जो देश में छोटी-सी विपत्ति आ जाने पर भीख का कटोरा लेकर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं। इसके अलावा भिखारी अनेक श्रेणी के होते हैं।


कुछ भिखारी परिस्थिति से बनते हैं तो कुछ बना दिए जाते हैं। कुछ शौकिया भी इस व्यवसाय में आ गए हैं। जन्मजात भिखारी अपनी भीख माँगने की जगह पर अपना आसन जमाए रखते हैं। कुछ भिखारी अपनी आमदनी वाली जगह को दूसरे भिखारी को किराए पर देते हैं। आधुनिकता के कारण अनेक वृद्ध मजबूरीवश भिखारी बनते हैं। गरीबी के कारण बेसहारा लोग भीख माँगने लगते हैं। काम न मिलना भी भिक्षावृत्ति को जन्म देता है। कुछ अपराधी बच्चों को उठा ले जाते हैं तथा उनसे भीख मँगवाते हैं। वे इतने हैवान होते हैं कि भीख माँगने के लिए बच्चों का अंग-भंग भी कर देते हैं।


भारत में भिक्षावृत्ति का इतिहास बहुत पुराना है। देवराज इंद्र व विष्णु श्रेष्ठ भिक्षुकों में थे । इंद्र ने कर्ण से अर्जुन की रक्षा के लिए उसका कवच व कुंडल ही भिक्षा में माँग लिए । विष्णु ने वामन अवतार लेकर भिक्षा माँगी। धर्म ने दान की महिमा का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया, जिसके कारण भिक्षावृत्ति को भी धार्मिक मान्यता मिल गई । यहाँ भिखारियों की संख्या लाखों में है। पूजा-स्थलों, तीर्थों, रेलवे स्टेशन, बस-स्टैंड, गली-मुहल्ले आदि हर जगह भिखारी दिखाई देते हैं। इस कार्य में हर आयु का व्यक्ति शामिल है। साल-दो-साल के दुधमुंहे बच्चे से लेकर अस्सी-नब्बे वर्ष के बूढ़े बाबा तक को भीख माँगते देखा जा सकता है।


भीख माँगना भी एक कला है। यह अभ्यास या सूक्ष्म निरीक्षण से सीखी जाती है। अपराधी बाकायदा इस काम की ट्रेनिंग देते हैं। भीख रोकर, गाकर, आँखें दिखाकर या हँसकर भी माँगी जाती है। भीख पाने के लिए जरूरी है कि दाता के मन में करुणा का भाव जाग्रत किया जाए। अपंगता, कुरूपता, वृद्धावस्था आदि से दाता करुणामय होकर दान देने की परंपरा का निर्वाह करता है।


भिखारी का जीवन आम भारतीय से दयनीय दशा में नहीं है। वह भूखा कभी नहीं मरता। उसे कपड़ों की कमी नहीं होती। उसे भीख माँगने का समय व स्थान मालूम होता है। उस पर कानून का डंडा नहीं चलता। वह व्यसन कर सकता है, चोरी कर सकता है, मादक द्रव्यों का व्यापार कर सकता है। यह देश विचित्र है। यहाँ का मजदूर भूखा सो सकता है, आम आदमी बेकार रह सकता है, गरीब को दवाई नहीं मिल पाती, परंतु भिखारी को भीख अवश्य मिलती है।


अब इस भिक्षावृत्ति को समाप्त कैसे किया जाए ? सर्वप्रथम, हमें अपने धार्मिक जीवन से दान देने की परंपरा को खत्म करना होगा। मोक्ष पाने की लालसा को भिक्षा देने से अलग करना होगा। अपराधियों द्वारा चलाए जा रहे भिक्षा-गिरोहों पर सख्त कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए तथा समाज के उस दृष्टिकोण को बदलना होगा जो लाचार, निरीह व असहाय लोगों की समय पर सहायता नहीं करते और उन्हें भिखारी बनने पर मजबूर कर देते हैं।

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