पुस्तकालय


ज्ञान ही मनुष्य का धन है, ज्ञान के अभाव में मनुष्य अन्य जीवधारियों की भाँति आहार, निद्रा, भय और मैथुन की चिंता मात्र करने वाला कोरा पशु है। आज इसी ज्ञान को गुरु के अभाव में पुस्तक से प्राप्त किया जा सकता है। संसार में बड़े-बड़े ज्ञानी, दार्शनिक और कवि पुस्तक पढ़कर ही बने। रवींद्रनाथ ठाकुर के सच्चे गुरु उनकी प्रिय पुस्तकें थीं निराला जी का घर तो पुस्तकालय ही था। संसार की व्यवस्था बदलने वाला मार्क्स सात वर्ष तक बर्लिन के पुस्तकालयों में बैठकर पढ़ता रहा।


पुस्तकों का साम्राज्य अनंत है। पुस्तकों के अनेक प्रकार होते हैं; जैसे-धर्म, विज्ञान, इतिहास, गणित, प्राचीन ग्रंथ, नए ग्रंथ, पाठ्यपुस्तकें, काव्य, गद्य, कहानी, उपन्यास आदि। शोध करने वालों के लिए प्राचीन हस्तलिपियों, पत्रों एवं पत्राचारों की आवश्यकता होती है। यह आवश्यकता पुस्तकालयों से ही पूरी होती है।


पुस्तकों का आगार पुस्तकालय एक ज्ञान-पिपासु पाठक के लिए उपयोगी होता है। विभाग एवं विषयों के अनुसार पुस्तकों का संग्रह करना, एक स्थान पर रखना, जीर्ण-शीर्ण पुस्तकों व पांडुलिपियों की सुरक्षा आदि का कार्य पुस्तकालय-विज्ञान का अभिन्न अंग है। पुस्तकालयों से सर्वाधिक लाभ उन पाठकों को होता है जो बहुमूल्य पुस्तकें बाजार से खरीदकर नहीं पढ़ सकते। कुछ ऐसी पुस्तकें जो बाजार में उपलब्ध नहीं होती-अच्छे पुस्तकालयों में अधिक सुरक्षा से रखी जाती हैं।


संसार में पुस्तकालयों की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। भारत में तक्षशिला, नालंदा और काशी में विशाल पुस्तकालयों का जिक्र मिलता है। ब्रिटेन का लंदन हाउस, ऑक्सफोर्ड, हावर्ड, मिशीगन और टोक्यो विश्वविद्यालय के पुस्तकालय आधुनिक युग के बड़े पुस्तकालय हैं। इनमें करोड़ों की संख्या में पुस्तकें हैं। लाइब्रेरी विज्ञान में इतनी उन्नति हो चुकी है कि विषयमात्र की चर्चा से आवश्यक पुस्तक सामने आ जाती है। पुस्तक-सूची और विषय-सूचियों की रचना तरीके से की जाती है। अब तो विषयों के आधार पर भी अलग-अलग पुस्तकालयों का निर्माण किया जाने लगा है; जैसे-इतिहास और समाज विज्ञान की जानकारी के लिए राष्ट्रीय पुस्तकालय, नई दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर सप्तू हाउस आदि इतने विशाल हैं कि अध्येता को इच्छित सामग्री के लिए अन्य स्थान पर नहीं जाना पडता। पुस्तकालयों से जीवन में जितना लाभ लिया जा सके, कम ही होगा। ये तो अपने में मानव जीवन के हितों के लिए खजाना समाहित किए हुए हैं। मनोरंजन हेतु हम काफी पैसा खर्च करते हैं, परंतु पुस्तकालय हमें मनोरंजन हेतु विविध प्रकार की पुस्तकें प्रदान करते हैं। इन पुस्तकों से सुचरित्र का निर्माण होता है।


आदर्श पुस्तकालयों के लिए अच्छे व्यवस्थापकों का होना अति आवश्यक है। कुशल व्यवस्थापक ही ऐसी पुस्तकों का चयन कर सकता है जो हर व्यक्ति की रुचि की हो। इसके अलावा पुस्तकालय के लिए आकर्षक भवनों का होना भी जरूरी है। पुस्तकालय के भवन में रोशनी, वायु तथा साज-सज्जा के समानों का होना भी आवश्यक है ताकि लोगों को पढ़ने में असुविधा न हो। पुस्तकालयों के अनेक लाभ हैं, परंतु हमारे देश में इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अधिकांश पुस्तकालयों में अच्छे व्यवस्थापक नहीं हैं या पर्याप्त भवन नहीं हैं। आर्थिक सहायता का भी अभाव रहता है। इसके अतिरिक्त, आम व्यक्ति की प्रवृत्ति पुस्तक पढ़ने की नहीं है। अधिकांश विद्यार्थी अपने पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी पुस्तकें पढ़ना नहीं चाहते। कुछ तो पुस्तकें फाड़ देते हैं या उन पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करते हैं। कुछ चोरी जैसा जघन्य कार्य भी करते हैं। अत: सभी पाठकों का कर्तव्य है कि वे पुस्तकों का सम्मान करें और उनके अध्ययनकाल में पूर्ण सावधानी बरतें।


पुस्तकों की उपयोगिता के साथ-साथ पुस्तकालयों का अस्तित्व एके अनिवार्य सत्य है। किसी भी शिक्षण संस्थान का स्तर उसके पुस्तकालय के आकार-प्रकार से आँकना इसी सत्य-स्थिति का द्योतक है। जान के इन अक्षय भंडारों के प्रति प्रेम और उनमें समाहित ज्ञान का उपयोग और इनसे ज्ञानार्जन, राष्ट्र का विकास करेगा।

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