भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद जब पहली बार आम चुनाव कराए गए, तब देश में सच्चे अर्थों में लोकतंत्र स्थापित हो सका। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। राजतंत्र में लोगों को अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार नहीं होता, किंतु लोकतंत्र में देश के नागरिकों को यह अधिकार होता है कि वे अपनी पसंद की सरकार चुन सकें। स्वतंत्र भारत में नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त हो चुका है। यहाँ 18 साल से ऊपर के युवक-युवतियों तथा अन्य नागरिकों को मतदान करने का अधिकार है।
जब किसी युवक या युवती को पहली बार मताधिकार का अवसर मिलता है, तो उसके मन में विचित्र-सी उत्सुकता होती है। वह महसूस करता है कि वह भी एक जिम्मेदार नागरिक बन गया है, जो देश की सरकार चुनने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने जा रहा है। कुछ ऐसे ही विचार मेरे मन में भी उस समय उठ रहे थे, जब मुझे पहली बार मतदान का अवसर मिला। मन में एक अद्भुत उल्लास तो था ही, साथ ही जिज्ञासा भी थी। यह अवसर मुझे मई 2014 में मिल गया, जब देश में लोकसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में मुझे भी अपने संसदीय क्षेत्र से सांसद चुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दूरदर्शन, समाचार-पत्रों, इलाके में आयोजित चुनावी सभाओं, कार्यकर्ताओं के चुनाव प्रचार से अब तक राजनीति की समझ तथा नेताओं के चरित्र की वास्तविकता समझ में आने लगी थी। मैंने अपनी इच्छा के बारे में माता-पिता को बताया कि मैं स्वच्छ छवि वाले भ्रष्टाचारमुक्त व्यक्ति को ही अपना मत दूँगा। ऐसा व्यक्ति ही मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतर सकता है। मैंने अपने क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों तथा माता-पिता से उम्मीदवारों के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी लेकर मतदान का निर्णय किया।
समाज में कुछ लोग मतदान की उपेक्षा करते हैं। उनकी सोच होती है कि 'कोठ नृप होय, हमें का हानी'। इस कारण वे मतदान के दिन को छुट्टी का दिन मानकर मौज-मस्ती में बिताते हैं। शायद वे यह नहीं जानते हैं कि यह एक विशिष्ट अधिकार है, जिससे हम सरकार और देश की व्यवस्था से जुड़ते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का मत अमूल्य होता है। कभी-कभी बहुत कम मतों के अंतर से हार-जीत का फैसला हो जाता है, तब एक-एक मत की कीमत समझ में आती है। यही कारण है कि मैं मतदान के प्रति पूर्णतया सजग और जागरूक था।
मतदान के दिन मैं प्रात: सात बजे ही नहा-धोकर तैयार हो गया। मैंने घरवालों की प्रतीक्षा नहीं की और मतदान केंद्र पहुँच गया, पर एक भूल हो गई कि मैं अपना मतदाता पहचान-पत्र ले जाना भूल गया। मुझसे गेट पर पहचान-पत्र माँगा गया, तब ध्यान आया कि उत्सुकता और जल्दबाज़ी के कारण मतदाता पहचान-पत्र तो लाना ही भूल गया। दौड़कर घर गया और पहचान-पत्र के साथ वापस आया। मैं मशीन द्वारा मतदान होते देखना चाहता था। गेट पर जल्दी से पहचान-पत्र दिखाकर अंदर गया और कतार में खड़ा हो गया। अपने क्रम पर जब मैं अंदर गया तो पहले अधिकारी ने मेरा नाम और क्रमांक खोजकर एक पर्ची दी। दूसरे अधिकारी ने मेरे हस्ताक्षर कराकर बायें हाथ की तर्जनी पर स्याही लगा दी। अब पीठासीन अधिकारी ने मुझे गत्ते से बने एक केबिन में जाने को कहा, जहाँ मतदान मशीन रखी गई थी। उनका आदेश पाते ही मैंने अपनी पसंद के उम्मीदवार के चुनाव चिह्न के सामने की बटन दबा दी। एक लंबी बीप की आवाज़ से पता चला कि मेरा मतदान हो गया। मतदान में पहली बार शामिल होकर मुझे गर्वानुभूति हो रही थी। मुझे एक विचित्र संतोष की अनुभूति हो रही थी। अब तो में प्रत्येक युवा से कहता फिरता हूँ कि उन्हें भी अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, ताकि सरकार के गठन में वे अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकें। हम सभी को स्वतंत्र भारत में मतदान के अधिकार के इस हथियार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्तियों को यह दिन छुट्टी का दिन समझकर मौजमस्ती में न गँवाकर अपने दायित्व का पालन करने से नहीं चूकना चाहिए।
No comments:
Post a Comment
Thank you! Your comment will prove very useful for us because we shall get to know what you have learned and what you want to learn?