ऋतुओं में वर्षा ऋतु का विशेष महत्व है। इसे जीवनदायिनी ऋतु कहा जाता है इस ऋतु में होने वाली वर्षा से धरती पर जीवन का संचार होता है। आषाढ़, सावन और भादों वर्षा ऋतु के मुख्य महीने हैं। जेठ बीतते ही लोग वर्षा की कामना करने लगते हैं, पर इस बार तो आषाढ़ बीत गया और वर्षा न हुई। लोग गर्मी के मारे थे। धरती जल रही थी सभी प्राणी वर्षा के लिए आशा-भरी दृष्टि से आकाश को निहार रहे थे। वे इंद्रदेव से जल बरसाने की प्रार्थना कर रहे थे इंद्र देव ने उनकी पुकार सुन लो और आका में बादल उमड़-घुमड़कर छाने लगे।
आकाश में उमड़ते बादलों को देखकर मन में आशा और उत्साह का संचार हो उठा। आकाश में बादलों की गर्जना सुनाई देने लगी। बिजली चमकने लगी. जिससे बालमन भयभीत हो उठा। कुछ देर तक जब बादल गरजते रहे और वर्षा नहीं हुई तो मन में भ्रम पैदा होने लगा कि बादल बरसेंगे या बिना बरसे ही आगे बढ जाएँगे, पर अचानक बूँदे गिरनी शुरू हो गई और मन का भ्रम मिट गया। धीरे-धीरे वर्षा की बूँदें और तेज़ हो गईं। आसमान बादलों से पूर्णतया ढक गया. जो इस बात का संकेत था कि आज तो अच्छी वर्षा होकर रहेगी। वर्षा का वेग बढ़ता जा रहा था। लोगों का ही नहीं धरती के सभी प्राणियों का मन हर्षित हो उठा। बच्चों में वर्षा का आनंद देखते ही बनता था। ऐसे में वे माँ-बाप का कहना कैसे मानते। वे वर्षा का आनंद लेने घर से बाहर निकल गए। वे उछल-कूदकर, वर्षा में भीगकर खुश हो रहे थे। छोटे बच्चे तो बहते पानी में लोट-लोटकर अपने शरीर की तपन बुझाने लगे। वर्षा के लिए आषाढ़ ने जितना इंतज़ार कराया, सावन ने आते ही उसे पूरा कर दिया। इस प्रकार वर्षा का आना सार्थक हो गया। बिना वर्षा के सावन कैसा! वर्षा ने अपनी छवि के अनुरूप ही झड़ी का रूप लेना शुरू कर दिया. हवा के झोंके के साथ यह कभी तेज़ हो जाती तो कभी धीमी। फुहारों के रूप में पड़ती वर्षा की छुअन शरीर को अद्भुत शीतलता प्रदान कर रही थी। इस वर्षा को देखकर किसान-वर्ग तरह-तरह की योजनाएँ बनाने लगा. तो बच्चे सोचने लगे कि जब वर्षा रुकेगी. तब कागज की नाव लेकर बाहर जाएँगे और पानी में नाव तैराएँगे। युवा इस वर्षा की समाप्ति पर सैर-सपाटे और पिकनिक मनाने का कार्यक्रम बनाने लगे। उस दिन दोपहर को शुरू हुई वर्षा की झड़ी रात भर लगी रही। ऐसा लगने लगा कि आषाढ़ माह की कसर भी पूरी हो जाएगी। रातभर वर्षा होने से जगह-जगह पानी भर गया। इससे धरती की तपन कुछ कम हुई। गरमी की भयंकरता कम हो चुकी थी। लोगों ने राहत की सांस ली। कल तक मुरझाई और झुलसी पेड़ों की पत्तियाँ हरी-भरी, धुली-धुली नज़र आ रही थीं। वे लहलहाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही थीं। उधर तालाबों में पानी भरने से पीले-पीले मेढक टर्रा-टरा कर अपनी खुशी प्रकट करते हुए वर्षा का गुणगान कर रहे थे। जंगल में मोर की केका सुनाई देने लगी। एक अच्छी-सी वर्षा ने मौन प्रकृति को मुखरित कर दिया। इस मुखर ध्वनि में प्रसन्नता एवं आनंद की झलक मिल रही थी। सावन की झड़ी युवाओं में विशेष उत्साह का संचार करती है। ऐसे में संयोगीजन प्रसन्न होते हैं, परंतु वियोगीजनों की पीड़ा दुगुनी हो जाती है। ऐसे में विरह-व्यथा झेल रहे नायक-नायिका मिलने के लिए व्याकुल हो उठते हैं। वर्षा उन्हें एक-दूसरे की याद में बेचैन कर देती है।
सावन की इस झड़ी का मनुष्य और प्रकृति दोनों के लिए अत्यंत महत्व होता है। यह प्रकृति और मनुष्य दोनों में ही आशा और उल्लास भर देती है। एक ओर यह धरती को हरा-भरा बनाती है तो दूसरी ओर गरमी के मारे तवे-सी जल रही धरती की ऊष्णता को शीतल कर देती है। धरती पर मुरझाए पेड़-पौधों में हरियाली पनप उठती है। वर्षा से धरती पर इधर-उधर बीजों का अंकुरण हो जाता है, जो धरती को हरा-भरा बनाने में योगदान देते हैं। सावन की यह झड़ी फसल की बुवाई, रोपाई कराने के अलावा फसलों की वृद्धि में भी सहायक बनती है। नई फसल की आशा से लोगों में नवजीवन का संचार हो उठता है। वे तरह-तरह की योजनाएँ बनाने लगते हैं। सावन की झड़ी जलाशय, पोखर, नदी-नालों के लिए भी जीवनदायिनी सिद्ध होती है। जल के बिना इनकी कोई महत्ता नहीं रह जाती, पर अब सब जल से भरने लगे हैं। जल-जीवों को नवजीवन मिल जाता है। तालाब स्वच्छ दर्पण जैसा लगता है। चाहो तो इसके किनारे खड़े होकर अपना प्रतिबिंब निहार लो। जलीय पौधे बढ़ने और फलने-फूलने की स्थिति में आ जाते हैं। जलचर जल-क्रीड़ा में लीन हो जाते हैं। धरती के सभी प्राणी वर्षा की ऋतु में सावन की झड़ी का इंतजार करते हैं। यह सर्वत्र हर्षोल्लास एवं सुखद वातावरण बनाती है। हमें सावन की पहली झड़ी के स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए।
No comments:
Post a Comment
Thank you! Your comment will prove very useful for us because we shall get to know what you have learned and what you want to learn?