'वरिष्ठ नागरिक' शब्द सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में उन बड़े-बुजुर्गों की छवि उभरती है जिनकी उम्र 65 वर्ष या इससे अधिक होती है। सामान्यतया सेवा-निवृत्ति की आयु 60 वर्ष होती है और सेवा-निवृत्त लोगों को इसी वर्ग में जाना जाता है। वरिष्ठ नागरिकों की ओर हमारा ध्यान इस तरह आकृष्ट होने का कारण है-उनकी कुछ समस्याएँ हैं, जिनसे उन्हें प्राय: दो-चार होना पड़ता है। वर्तमान में ऐसे लोगों को पार्कों में बैठकर बातें करते, ताश खेलते या परस्पर अपनी व्यथा-कथा कहते-सुनते देखा-सुना जा सकता है।
वरिष्ठ नागरिकों की सबसे प्रमुख समस्या है-उनका एकाकीपन। यह हमारे समाज की सोच में आए बदलाव और उच्च शिक्षा की देन है। लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा इसलिए दिलवाते हैं, ताकि उनके बच्चे अच्छी नौकरी पा सकें, अच्छे नागरिक बन सकें। वे अच्छी नौकरियाँ तो पा जाते हैं, यहाँ तक विदेशों में भी बसने लायक हो जाते हैं, परंतु यहीं उनकी सोच में बदलाव आ जाता है। लोग अपने वृद्ध माता-पिता को अपने साथ रखने में परेशानी महसूस करते हैं। इससे इस प्रकार के वृद्धजनों को अपनों से अलग रहकर इस प्रकार का जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता इसके अलावा आज की भागदौड़-भरी जिंदगी में लोगों के पास समय नहीं है कि वे घर के वरिष्ठ नागरिकों के पास बैठकर उनसे दो बातें कर सकें, उनकी समस्याएँ सुन सकें। ऐसे में ये वरिष्ठ लोग स्वयं को अपने घर-परिवार में उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। ये वरिष्ठ नागरिक भी सामान्य लोगों की तरह ही प्यार और अपनत्व चाहते हैं। वे भी आदर-सम्मान चाहते हैं, पर घर के युवा उनसे बातचीत नहीं करना चाहते। वरिष्ठ नागरिकों की दूसरी प्रमुख समस्या है-उनका स्वास्थ्य ठीक न रह पाना। वर्तमान जीवन-शैली और खान-पान की बदलती संस्कृति का असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। अब तो साठ वर्ष की आयु से पूर्व ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों का दर्द जैसी बीमारियाँ घेर लेती हैं जो उम्र बढ़ने के साथ-ही-साथ अधिक कष्टकर होती जाती हैं। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें उत्तम स्वास्थ्य के वरदान का सुख मिलता है। अस्वस्थ वरिष्ठ लोगों को समय पर चिकित्सा-सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। वे स्वयं अस्पताल जाने में असमर्थ होते हैं। इसके अलावा उनके पास महँगे इलाज के लिए पर्याप्त धन नहीं होता। घर के सदस्यों के पास इतना समय नहीं होता कि वे इन बूढ़े माता-पिता के साथ अस्पताल तक जा सकें या बीमार होने पर घर में उनकी उचित देखभाल कर सकें। आज स्थिति यह है कि हमारा जन्मदाता ही हमारे सामने असहाय स्थिति में जीने को विवश है। टूटते संयुक्त परिवारों के कारण अब यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है।
वरिष्ठ नागरिकों की तीसरी समस्या है-उनके लिए मनोरंजन और समय बिताने की उचित व्यवस्था का अभाव। युवा वर्ग अपने मनोरंजन के लिए सैर-सपाटा, फ़िल्में देखना, क्लब जाना जैसे कार्यों में हँसी-खुशी से समय बिता देता है, पर गिरते स्वास्थ्य और धनाभाव के कारण वरिष्ठजन ऐसा नहीं कर सकते। समाज में उनके लिए ऐसी विशेष जगह नहीं है, जहाँ वे मनोरंजन करते हुए अपना समय बिता सकें। पार्क जैसी सार्वजनिक जगहों पर उन्हें उपेक्षा और अपमान का घूँट पीना पड़ता है। इसके लिए उन्हें विविध स्थलों पर भ्रमण हेतु ले जाना चाहिए। नौकरी तथा व्यापार कर चुके लोगों को अपना अंशदान करके मनोरंजन के साधन स्वयं बनाने चाहिए। हमें उनको 'वरिष्ठ नागरिक' कहकर दया का पात्र नहीं समझना चाहिए। उनके साथ सहानुभूति, प्रेम तथा यथोचित व्यवहार करना चाहिए।
वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष क्लब बनाए जा रहे हैं, ताकि वहाँ वृद्धजन एकत्र हो सकें और उनका एकाकीपन दूर हो सके। इन क्लबों में उनके लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। लोगों में उनके प्रति सम्मान की भावना बढ़ रही है। मेट्रो रेल, रेलगाड़ियों में आरक्षण, बस आदि में उनके लिए सीटों की व्यवस्था की जाने लगी है। हमारी कोशिश भी यही होनी चाहिए कि हम उन्हें लंबी कतार से बचाएँ। उनके पास अनुभव की जो पूँजी है, उससे लाभान्वित हों तथा उन्हें समाज एवं परिवार का अभिन्न अंग समझकर उनका आदर-सत्कार करें।
वरिष्ठ नागरिकों को आज के युवाओं की व्यस्त जिंदगी के कारण उनकी विवशता समझने का प्रयास करना चाहिए, उन्हें यथासंभव प्रसन्नचित्त रहना चाहिए तथा छोटी-मोटी समस्याओं की अनदेखी करके खुश रहना चाहिए तथा भ्रमण और योग का सहारा लेकर अपने तन-मन को स्वस्थ बनाने का प्रयास करना चाहिए। चिंता चिता के समान होती है। अत: उन्हें चिंतामुक्त रहने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए। उन्हें घर-परिवार के साथ सहयोग करते हुए उत्साहित एवं प्रसन्नता का जीवन जीना चाहिए। उन्हें चाहिए कि किसी-न-किसी काम में स्वयं को व्यस्त रखें तथा मस्त रहें। हम नवयुवकों का नैतिक दायित्व है कि हम उन्हें एकाकीपन से बचाएँ तथा उनकी यथासंभव सहायता के लिए तत्पर रहें।
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